पत्रिका-वागर्थ, अंक-नवम्बर.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-डाॅ. विजय बहादुर सिंह, पृष्ठ-130, मूल्य-20रू.(वार्षिक 200रू.), सम्पर्क-भारतीय भाषा परिषद, 36ए, शेक्सपियर सरणि, कोलकाता 700.017 (भारत), फोनः(033)22879962, ई मेलः bbparishad@yahoo.co.in
वागर्थ का नवम्बर .09 अंक आंशिक रूप से हिंद स्वराज के सौ साल हेतु समर्पित है। धर्मपाल जी ने इस पर सार्थक तथा गंभीर चर्चा की है। पत्रिका के संपादक विजय बहादुर सिंह, सच्चितानंद सिंहा, गिरीश मिश्र, मैत्रेयी पुष्पा, काशीनाथ सिंह एवं अलका सरावगी के आलेख पाठकों को अदभुत् तथा स्तरीय सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इस संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री व चिंतक श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से रामपूजन सहाय की बातचीत हमारी वर्तमान स्थिति तथा भविष्य की तैयारी पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। कनक तिवारी तथा मैनेजर पाण्डेय जी के आलेख हिंद स्वराज का सच बताते हुए इस विषय को पुनः प्रस्तुत करते दिखाई देते हैं। सभ्यता विकास और हिंद स्वराज पर विद्वान सुंदरलाल बहुगुणा से जार्ज जेम्स की बातचीत सहेज कर रखने योग्य है। ख्यात आलोचक लेखक कृष्ण दत्त पालीवाल का आलेख ‘कहिए कौन कुटिल खल कामी’ पढ़ने पर लगता है कि साहित्य जैसा समझा जाता है वैसा नहीं है पर जैसा दिखता है वैसा भी नहीं है। उसे समझने के लिए विशेष अध्ययन चिंतन मनन की आवश्यकता है। राधा वल्लभ त्रिपाठी का आलेख कविता में सत्ता के विरोध की परंपरा और महिषतकम्’ लेखक की वर्षो से की गई साहित्य साधना का सुफल है। बसंत त्रिपाठी, अजामिल, कालीप्रसाद जायसवाल एवं कुशेश्वर की कविताएं वर्तमान संदर्भो की कविताएं हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं व पत्र-समाचार आदि भी प्रभावशाली व पाठक के लिए अध्ययन की विशेष सामग्री है। पत्रिका के 172 वंे सहेजकर रखने योग्य संग्रहणीय अंक के लिए कथाचक्र परिवार की ओर से बधाई।

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