पत्रिका: वागर्थ, अंक: जुलाई 2021, स्वरूप: मासिक, संपादक: श्री श्री शंभुनाथ जी, प्रकाशक: डाॅ. कुसुम खेमानी, संपादन सहयोग: श्री सुशील कान्ति, आवरण/रेखाचित्र: नेट से लिये गये साभार, पृष्ठ:96, मूल्य: 25 रूपये, वार्षिक मूल्य: 300 रूपयें, ई मेल : vagarth.hindi@gmail.com, फोन/मोबाइल: 7449503734, वेबसाइट: , सम्पर्क: भारतीय भाषा परिषद, 36ए, शेक्सपियर सरणी, कोलकाता 17
मित्रों, आपको सूचित करते हुये प्रसन्नता है कि हम वागर्थ के अनेक अंकों की समीक्षा पूर्व में भी कर चुके हैं। आप पढ़ना चाहें तो कथा चक्र पर पढ़ सकते हैं।
वागर्थ हिंदी साहित्य की अग्रणी पत्रिकाओं में से एक है। यह पत्रिका कोलकाता जैसे बंगला भाषी शहर से प्रकाशित होती है। लेकिन इस पत्रिका की हिंदी, शैली, प्रवाह तथा स्पष्टता अंतरमन की गहराई तक प्रभावित करते हैं। आइये इस पत्रिका की रचनाओं से परिचय प्राप्त करें।
वागर्थ का संपादकीय
श्री शंभुनाथ जी स्थापित साहित्यकार हैं। वे वागर्थ की संपादकीय परंपरा तथा मानदण्डों का निर्वाहन पूर्ण निष्ठा के साथ कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि आज बुद्धिजीवियों में शक्ति सत्ता, विदेशी फण्ड या व्यावसायिक पुरस्कारों से आती है। यह एक लोकतांत्रिका देश में होना नहीं चाहिये। लेकिन होता है, उसका क्या करें? कोई समाधान भी नहीं है।
आज का बुद्धिजीवी इन्हीं कारणों से किनारे कर दिया गया है, अथवा वह ना चाहते हुये भी मुख्य धारा से कट गया है। संपादकीय विचारणीय है, आज के संदर्भ में समाज में बहुत कुछ बदलाव की अपेक्षा करता है। लेकिन यह बदलाव कितना संभव है? इसके बारे में कुछ कहना कठिन है।
कहानियां
पत्रिका के इस अंक में तीन कहानियां प्रकाशित की गई है। उनका विवरण निम्नानुसार है -
कहानी अनबीता व्यतीत को हुस्न तबस्सुम निंहां ने लिखा है। यह कहानी मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी युवती की कहानी है। अफसाना निगार ने विवाह के पश्चात युवती के नये परिवेश को अच्छी तरह से बुना है। कहानी की मुख्य पात्र रश्मि को वह परिवेश पसंद नहीं आता है। इसलिये वह वापस घर आकर एम.ए. करना चाहती है।
आजकल अधिकांश युवतियां विवाह के बाद के जीवन को आत्मसात नहीं कर पाती है। तबस्सुम ने इसे बहुत अच्छी तरह से सफेद केनवास पर उतारा है। कहानी प्रभावित करती है।
औरत का घर कहानी को जसिता केरकेटटा ने लिखा है। यह कहानी स्त्री प्रधान कहानियों से हटकर है। जब सोमा ने बच्चे को पंचायत में स्वीकार कर लिया तब गांव में किसी को कोई परेशानी नहीं होना चाहिये। लेकिन लोगों में असंतोष उभरता है। कहानी अन्य पात्रों के साथ आगे बढ़ती है। लेकिन घर मिलना औरत के लिये नामुमकिन है।
कहानीकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दुनिया में औरत को दूसरा घर मिलता है। लेकिन यह स्थाई नहीं होता है। यही महिला की नियति है। उसपर अनेक लांछन लगाये जाते हैं। 21 वीं सदी के भौतिकवादी आधुनिक युग में यह सब खलता है। कहानी प्रभावित करती हैं।
पत्रिका में गुजराती कहानी काॅफिन प्रकाशित की गई है। इसे गुजराती कथाकार श्री सुमंत रावल ने लिखा है। अनुवाद श्री राजेन्द्र निगम ने किया है। कहानी 20 वीं शताब्दी के छटवें सातवें दशक की याद दिलाती है। तब में और आज में बहुत अंतर है। गांव में बरसात होने पर किस तरह की स्थिति निर्मित होती है। कथाकार ने रेखाचित्र की भांति वर्णन किया है।
कहानी अच्छी है। वैसे अनुवाद की गई कहानियां पढ़ने में कठिन लगती है। लेकिन इस कहानी के साथ ऐसा नहीं है।
कविताएं
इस भाग में 2 कविताएं प्रकाशित की गई है। आइये अब हम इनका कविताओं का रसास्वादन करते हैं-
हिंदी साहित्य जगत मे अब पूर्णतः स्थापित हो चुकी कवियत्री सुश्री नीलेश रघुवंशी की कविताएं, उनकी अन्य कविताओं के समान प्रभावशाली है। यह नवयुग की कविताएं हैं। इनमें नयेपन के साथ साथ जहां एक ओर समाज से संवाद है, विचार विमर्श है। वहीं दूसरी ओर कुछ अपेक्षाएं भी है।
आजकल के पाठक कविताओं से उबने से लगे हैं। लेकिन नीलेश जी की कविताएं आपको उब से बचाकर कुछ नया सोचने के लिये प्रेरित करेंगी।
उभरते हुये समीक्षक, आलोचक श्री आशीष मिश्र ने नीलेश जी की कविताओं के बारे में विस्तार से लिखा है। सच तो यह है कि सुश्री नीलेश ने जीवन मे कविता को जिया है। उसे अपने जीवन में कहीं ना कहीं महसूस किया है। यह लेख उनकी कविताओं के माध्यम से बहुत कुछ बयां करता है। पठनीय, विचारपूर्ण लेख।
अन्य कविताओं में
श्री शरदचंद्र श्रीवास्तव आधी रात
श्री अतुल चतुर्वेदी कुछ कविताएं
श्री राजेन्द्र उपाध्याय पहचान पत्र गुम हो जाने पर
श्री बृजनाथ श्रीवास्तव कविताएं
श्री विनोद शलभ चंद बयान
श्री अशोक सिंह कविताएं
श्री शैलेन्द्र चौहान सीने में फांस की तरह
श्री ब्रज श्रीवास्तव दो कविताएं
श्री हर्ष माधव संस्कृत से अनुदित दो कविताएं
सुगंधाकुमारी मलयालम कविता अनुवाद बालमुकुंद नंदवाना
कवियों की कविताएं प्रकाशित की गई है। प्रायः सभी कविताएं सामाजिक परिवर्तन तथा बदलाव की अपेक्षा करती दिखाई पड़ती हैं। इन्हें अवश्य पढ़ें।
संस्मरण
इस भाग में सुश्री शर्मिला जालान का संस्मरण है। जिसे उन्होंने श्री प्रबोध कुमार पर लिखा है। शीर्षक है, जो दूसरों की कथा सुनाते हैं। श्री प्रबोध कुमार स्थापित कथाकार रहे हैं। उनकी कहानियां एवं अन्य रचनाएं समय समय पर विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है।
उन पर संभवतः यह पहला संस्मरण है। लेखिका ने संस्मरण को भी कहानी के समान सरस बना दिया है। अच्छी रचना है।
विश्वदृष्टि
इस भाग में अच्छी तथा पठनीय रचनाओं का प्रकाशन किया गया है। इनमें सुश्री महिमा श्रीवास्तव की अनुवादित कहानी स्वप्न, कहो हां या ना अंग्रेजी कहानी का अनुवाद उपमा ऋचा जी द्वारा शामिल है। अन्य रचना में उपमा ऋचा की अनुवादित कविताएं भी इस भाग में है।
हिंदी के पाठक के साथ यह परेशानी है कि वह अनुवादित रचनाओं से तारतम्य नहीं बैठा पाता है। पत्रिका इसके लिये प्रयासरत है। यह अवश्य है कि हमें हिंदी के साथ साथ अन्य भाषाओं का साहित्य भी पढ़ना चाहिये। इस कार्य को वागर्थ पत्रिका बहुत अच्छी तरह से अंजाम दे रही है।
लघुकथा
पत्रिका के इस संस्करण में श्री शंभुशरण सत्यार्थी की लघुकथा अंतिम दर्शन प्रकाशित की गई है। इस मार्मिक लघुकथा को अवश्य पढ़े।
आलेख
श्री विनोद साही का आलेख प्रसाद एवं छायावाद में नयापन है। यह श्री प्रसाद जी की रचनाओं पर आधुनिक दृष्टिकोण से विचारदर्शन है।
बतरस
इस भाग में श्रीमती कुसुम खेमानी का लेख मारवाडी राजबाडी प्रकाशित किया गया है। डाॅ. कुसुम खेमानी वरिष्ठ लेखिका हैं। उन्होंने एक अच्छा पठनीय लेख लिखा है।
रचना की पात्र ऋतु जीवन में बहुत कुछ करना चाहती है। वह कुछ पाती है तो कुछ पाने की ख्चाहिश मे रहती है। रचना सरस है तथा प्रभावित करती हैं ।
पत्रिका की अन्य रचनाएं, सभी स्थाई स्तंभ तथा आलेख पठनीय एवं विचारयोग्य हैं।
पत्रिका वागर्थ के लिंक पर क्लिक कर इसे पढ़ें। हमे बतायें कि पत्रिका का यह अंक आपको कैसा लगा? हमारी समीक्षा पर आपके विचारों से अवश्य अवगत करायें।
अखिलेश शुक्ल
समीक्षक, ब्लागर, संपादक
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंवागर्थ जुलाई अंक 2021 की विस्तृत समीक्षा हेतु टीम की ओर से अनेक आभार. किंतु आपकी समीक्षा में एक सुधार आपेक्षित है, कृपया मेरे यानी उपमा ऋचा के नाम में से 'श्रीमती' हटा दें. सादर धन्यवाद
उपमा ऋचा
मल्टीमीडिया एडिटर वागर्थ
जी मैडम मैंने अपेक्षित सुधार कर दिया है।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें