पत्रिका: सहचर ई पत्रिका, अंक: तेइइसवां अंक, मई 2021, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय, सहा. संपा.: अनुराग सिंह, श्रुति गौतम, आवरण/रेखाचित्र: जानकारी नहीं, पृष्ठ:वेब पत्रिका, मूल्य: N.A., वार्षिक मूल्य: N.A., ई मेल : N.A. फोन/मोबाइल: N.A. , वेबसाइट: http://www.sahchar.com/ , सम्पर्क: ,- डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय, हिंदी विभाग, रामानुजन कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली, भारत
मित्रों कथा चक्र पर हम देश विदेश की अनेक पत्रिकाओं की समीक्षा दे रहें हैं। आज हम एक ई पत्रिका Sahchar पर चर्चा करेगें। यह पत्रिका का तेइसवां अंक है। जिसमें अनेक अच्छी पठनीय रचनाएं प्रकाशित की गई है।
आइये शुरू करते हैं, सहचर की रचनाओं पर समीक्षा -
संपादकीय
पत्रिका का संपादकीय महिला लेखन पर एकाग्र है। इसमें भक्तिकालीन मीराबाई से लेकर ख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की चर्चा की गई है। सहचर का यह अंक महिला रचनाकारों पर एकाग्र है। संपादक श्री पाण्डेय ने महादेवी वर्मा जी को याद करते हुये साहित्य में उनके योगदान की चर्चा की है।
साक्षात्कार
पत्रिका में कनाड़ा की प्रसिद्ध हिंदी कथाकार हंसादीप से डॉ. दीपक पाण्डेय का साक्षात्कार प्रकाशित किया गया है। विदेशों में रहकर अनेक भारतीय साहित्यकार हिंदी की सेवा कर रहे हैं। उनमें सुश्री हंसादीप जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। एक प्रश्न के उत्तर में उनका कहना है, आज तक का संपूर्ण जीवन हिंदीमयी रहा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। विदेश में रहकर हिंदी सेवी रचनाकार का यह कथन नये हिंदी के लेखकों को लेखन के लिये प्रोत्साहित करता है।
साक्षात्कार में अनेक उपयोगी प्रश्न पूछें गये हैं। इन प्रश्नों के उत्तर से उनके रचनाकर्म की जानकारी मिलती है।
आलेख
आलेखों में महादेवी वर्मा के लेखन पर अनेक उपयोगी संग्रह योग्य लेख प्रकाशित किये गये हैं। उनका विवरण निम्नानुसार है-
आप पढ़ रहे हैं, ख्यात ई पत्रिका सहचर के तेइसवें अंक की समीक्षा।
इसी श्रृंखला में डॉ. ममता देवी यादव का आलेख प्रकाशित किया गया है। इस शोधालेख का शीर्षक है संवेदनशील कवयित्री: महादेवी वर्मा । लेखिका ने महादेवी जी के छायावाद एवं रहस्यवादी काव्य को लेकर उपयोगी लेखन किया है।
डॉ. क्षमा सिसोदिया उज्जैनी का लेख महादेवी का नारी विषयक दृष्टिकोण अलग तरह का आलेख है। इस लेख में महादेवी जी के नारी विषयक चिंतन पर प्रकाश डाला गया है।
महादेवी वर्मा के काव्य की विशेषताएं लेख डॉ. विष्णु गोविंदराव राठोड ने लिखा है। लेखक ने महादेवी जी के प्रकृति चिंतन, भावना तथा कल्पना एवं पीड़ को लेख का आधार बनाया है। अच्छा लेख है।
डॉ. भगत गोकुल महादेवी का लेख महादेवी वर्मा के काव्य में संवेदना। लेख महादेवी जी की काव्यगत विशेषताओ को लेकर है।
डॉ. मनीष कुमार जैन ने महादेवी जी के काव्य की असाधारणता को लेकर अपना लेख लिखा है। शीर्षक है, महादेवी वर्मा: असाधारण काव्य में साधारणीकरण।
डॉ. संतोष कुमार पाण्डेय का लेख महादेवी जी के काव्य शिल्प को लेकर है।
डॉ. सौ तेजल मेहता ने एक नजर महादेवी वर्मा पर लेख में महादेवी जी के काव्य की व्यापकता पर प्रकाश डाला है।
ज्वलंत विषय
इस भाग के अंतर्गत तात्कालिक विषयों पर चर्चा की गई है। राष्ट्रीय अस्मिता को हिंदी भाषा ही बचा सकती है। विषय पर प्रो. हरिशंकर मिश्रा तथा प्रो. करूणाशंकर उपाध्याय ने अपने विचार रखे हैं।
कविताएं
कविताओं के भाग को पत्रिका ने अनुभूति नाम दिया है। इसके अंतर्गत राकेश धर द्धिवेदी, गोलेन्द्र पटैल, रंजीत कुमार त्रिपाठी, आचार्य धीरज द्धिवेदी, तेजस पूनिया, डॉ. लता, मनीष सिंह वंदन, सुरेश लाल श्रीवास्तव की कविताएं हैं।
जरा हट के
यह साहित्यिक विषयों से हटकर लिखे गये लेखों का संग्रह है। इसमें समसामयिक विषयों पर लेख प्रकाशित किये गये हैं। जिनमें आशीष कुमार पाण्डेय, शैलेन्द्र चौहान, शास्वत आनंद के लिखे लेख प्रमुख है।
तर्जुमा
यह सहचर का यह भाग अनुवाद पर आधारित रचनाओं का है। इसमें प्रो. माला मिश्र ने गांधारी कविता का अनुवाद किया है। मूल रूप से यह कविता उड़िया में लिखी गई है। इसे श्रीमती लीना पाणी ने लिखा है।
समीक्षा खण्ड
इस खण्ड में एक अकेली बेकाम बेफ्रिक बैटेम लड़की की कहानी आजादी मेरा ब्रांड अनुराधा बेनीवाल है। यह रचना यात्रा वृतांत है। लेखिक ने यूरोप के अनेक देशों का भ्रमण किया है। वृतांत पर सुश्री रीना ने समीक्षा लिखी है।
सिनेमा/फैशन
यह भाग साहित्यिक रचनाओं का भाग नहीं है। इसमें कुछ रचनाएं प्रकाशित की गई है। यह सामान्य पाठक के लिये उपयोगी हैं पत्रिका ने साहित्य से इतर पाठकों को जोड़ने के लिये इस भाग को ई पत्रिका में शामिल किया है।
देवी सिर्फ नाम की लेख निहारिका शर्मा ने लिखा है। यह लघु फिल्म देवी पर एक समीक्षालेख है।
पत्रिका की अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती है। ई पत्रिका में जो कुछ होना चाहिये वह सभी इस पत्रिका में शामिल किया गया हैै।
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ई पत्रिका सहचर के समीक्षक
वाह सराहनीय
जवाब देंहटाएंसाहित्यकारों को हमेशा अपने लिए अपने परिवार के लिए अपने समाज के लिए और दुनिया के लिए सत साहित्य का सृजन करना चाहिए। सार्थक साहित्य लिखना चाहिए। निरर्थक बातों में उलझा ने की आवश्यकता नहीं होती। मानव जीवन बहुत अनमोल है। बहुत तपस्या के बाद यह जीवन मिलता है। इस जीवन को कर्म क्षेत्र में satka munh mein lagana chahie।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा | अगर आपको भारत की सभ्यता,संस्कृति और साहित्य के बारे में अच्छे से जानना है तो हमारी वेबसाइट पर जरूर जाये https://thehindi.in/
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