पत्रिका: हंस, अंक: मई 2021, स्वरूप: मासिक, संपादक: श्री संजय सहाय, आवरण/रेखाचित्र: रोहित प्रसाद पथिक, शैलेन्द्र सरस्वती, पृष्ठ: 104, मूल्य: 40 रूपये वार्षिक 400 रूपये, ई मेल:  , फोन/मोबाईल: सम्पर्क: अक्षर प्रकाशन प्रा. लि. 2/36, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 2, बेवसाइट:  https://hanshindimagazine.in/

                साहित्यिक पत्रिका हंस मई 2021 अंक की PDF  साइट पर रूपये 30 में उपलब्ध है। खरीदनें के लिये यहां क्लिक करें। आप पत्रिका के लिये विभिन्न प्रकार के पेमेंट मोड में भुगतान कर सकते हैं। 

            हमेशा की तरह पत्रिका का संपादकीय समसामयिक है। संपादक श्री संजय सहाय ने  इसे आपदा में अवसर नाम दिया है। जिसमें कोरोना संक्रमण से जूझते हुये देश की नीति एवं नियति पर बेबाक टिपप्पणी की गई है। विगत वर्ष 2020 मार्च से लेकर आज तक का कच्चा चिटृठा पाठकों के सामने रखने में श्री सहाय ने सफलता प्राप्त की है। 

             कोरोना महामारी से डरी सहमी भारतीय जनता तथा उसके पश्चात टीकाकरण की रीति नीति। इसके साथ ही इस वर्ष लाशों के ढेर एवं उन पर सियासत? अनवरत् जलती, तैरती हुई लाशें और हमारी अमानवीयता। संपादकीय पाठकों को पुनर्विचार करने के लिये विवश करता है। 

            लगभग यही मंतव्य इस अंक का  भी है। जिसमें परंपरागत कहानियां, कविताएं तथा लेख हैं। लेकिन उनकी पारंपरिकता वर्तमान संदर्भो में बदलती चली गई है। 

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आइये अब जानते हैं पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं के संबंध में --

कहानियां 

            पत्रिका के इस अंक में कुल 6 कहानियां प्रकाशित की गई है। पहली कहानी बास्टर्ड है। इसे कमल कुमार ने लिखा है। हिंदी साहित्य में स्त्री विर्मश के लिये ख्यात कमल कुमार ने कहानी को बिलकुल नये अंदाज में लिखा है। जिसमे English शब्दों को देवनागरी में लिखा गया है। यह शब्द पाठक की सहायता ही करते हैं। मारूति, मर्सडीज बन जायेगी, कहकर लेखिका आमजन को प्रोत्साहित करना चाहती हैं। कहानी के छोटे छोटे संवाद प्रभावित करते हैं।

            वहीं दूसरी ओर कहानी डस्टबिन में पीक में एक अलग रंग है। कहानीकार श्री संजय कुमार कुदन शिक्षा विभाग को छोटा नहीं मानते हैं। यह आज अन्य लोगों को समझना है। श्री संजय जी ने दाम्पत्य जीवन की निराशा, अशांति तथा रोजमर्रा की खटपट को विस्तार से लिखा है। यह विस्तार कहीं समाप्त ना होकर आगे विचार करने के लिये अनेक प्रश्न छोड़ता है।

            श्री मदन मोहन जी शिनाख्त करने हुये भले से  लगते हैं। कहानी शिनाख्त की रवानगी पिछली शताब्दी के 6 वें 7 वें दशक की याद दिला देती है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद 80 प्रतिशत अंक प्राप्त होकर भी बेरोजगार बैठना भला किसे अच्छा लगेगा। दोस्तों को अधिक अंक मिलना कहानी के मुख्य पात्र को अखरता है। लेकिन वह उससे आहत हुये बिना अपनी बात रखता चला जाता है। 

            कहानी शुरू से अंत तक बहुत अच्छी तरह से बुनी गई है। इस लम्बी कहानी में अनेक स्तर पर शिनाख्त होते हुये दिखाई देती है। इतनी लम्बी कहानी आज के वाटसएप तथा फेसबुक पर कमेंट करने वालों पाठकों के लिये नहीं है। यह उनके लिये है जो गंभीर हैं। चिंतन मनन करते है। अपने परिवेश को जानना चाहते हैं। 

            कहानीकार श्री राजा सिंह की कहानी बेस्ट फ्रेड प्रभावित करती है। कहानी बैंक कर्मचारी के आसपास घूमती है। वह अपनी बेस्ट फ्रेंड को आसपास पाते हुये भी दूर ही महसूस करता है। इस लम्बी कहानी में कहानीकार ने कुछ अपने कुछ आसपास के परिवेश में रह रहे लोगों के अनुभवों को साझा किया है। क्योंकि कहानी के पात्र अमी तथा जून बेस्ट फ्रेंड साबित करने की जदद्ोजहद में भ्रमित रहते हैं। कहानी बड़ी होने के बाद भी अच्छी है।

            श्री राबिक सदा की कहानी आखिरी गच्चा रूसी स्त्री के आसपास बुनी गई है। वह रूसी लड़की ना हिंदी जानती नहीं है। और ना ही  उसे अंगे्रजी आती है। फिर भी कहानी के मुख्य पात्र से संवाद करती हुई कहानी आगे बढ़ती है। भले ही भाषा की बाधा हो लेकिन विचारों एवं हावभाव से बहुत कुछ समझा जाना जा सकता है। कहानी में इसे बहुत अच्छे तरीके से स्पष्ट किया गया है। इशारों ही इशारों में बात करने में तो कहीं से गच्चा खा जाना दिखाई नहीं देता है। 

          कहानी के अंत में गुड मार्निग करने के पश्चात मुख्य पात्र गच्चा खाता है। फिर भी यह तय है कि वह रूसी स्त्री कभी गच्चा नहीं खाई वह हर बात समझती रही। कहानी में अनेक मोड़ है, दलीलें तथा तकरार है लेकिन इन्कार नहीं है। नयापन लिये हुये यह कहानी काफी अच्छी है। 

किचन में बैंकिग, ग्रिल तथा टोस्टिंग में सुविधा होगी जब आपके पास फिलिप्स का शानदार ओवन टोस्टर ग्रिल (OTG) होगा। 

         श्रीमती सुषमा मुनीन्द्र जानी मानी कथाकार हैं। उनकी लिखी कहानी ये इश्क इश्क है इश्क इश्क पठनीय रचना है। कहानी की पात्र संयमी ने बहुत कुछ सहन किया है। उसी के आसपास कहानी रहकर कहानी आगे बढ़ती हैं अच्छी पठनीय रचना है। 

कविताएं 

पत्रिका में दो कवितयों की कविताएं शामिल की गई है -

        श्री नरेन्द्र नागदेव की दो कविताएं अंक में शामिल है। वे हैं, गुड मार्निग एवं समझ से परे । दोनों कविताएं गंभीर पाठकों के लिये हैं। इन्हें एक बार नहीं दो या तीन बार पढ़ने पर समझा जा सकता है। गुड मार्निग में सुबह की शुरूआत बिना नींद वाली रात से होती है। वहीं दूसरी ओर समझ से परे विशिष्ट अर्थ लिये हुये है। सब सिर झुका कर अपने अपने गमले के फूलों को उसी रंग मे रंग रहे थे। यह पक्तियां गूढ़ अर्थ लिये हुये है। वैसे अर्थ तो और भी हैं, उनका आनंद आप कविता पढ़कर ही ले सकते हैं। 

        कवियत्री श्रीमती कीर्ति उप्रेती की दो कविताएं हैं। जिनमें बस काफी है, एवं गुल्लक। कविता गुल्लक को उन्होंने नये अंदाज को प्रस्तुत किया है। वे गुल्लक के  माध्यम से अतीत को वर्तमान से जोड़ती हुई  दिखाई पड़ती हैं। सच का सौदा चाहता हूं, बस यही खराबी हैं। यह पंक्तियां सब कुछ कह  जाती है। अवश्य पढ़ें। 

साहित्यिक डायरी 

मेरी जेल डायरी: सलाखों के पीछे (अमिता शीरीं)

        आजकल साहित्यिक डायरी बहुत कम ही लिखी जा रही है। यह डायरी साहित्यिक होते हुये भी सामान्य पाठकों को आकर्षित करती हैं। इसे पढ़ने के लिये किसी विशेष साहित्य कौशल की जरूरत नहीं है। डायरीनिगार ने जेल के अनुभवों को विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। 

            यह डायरी की अपेक्षा कहानी अधिक लगती हैं यदि इसे दो भागों में विभाजित नहीं किया गया होता तब आप इसे कहानी ही समझते। बरहाल रचना अच्छी हैं। जेल के अंतिम दिन तथा रिहाई को विस्तार से दर्शाती है।

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ग़ज़लें 

        इस अंक में अनुपिद्र सिंह अनूप की गजल प्रकाशित की गई है। यह उर्दू ग़ज़ल से बिलकुल अलग होते हुये भी उसी पैरामीटर पर है। लोगों के पत्थर हो जाने एवं बदल जाने को बहुत अच्छे ढंग से लिखा है। 

        श्री शंभु शरण मण्डल की ग़जल के शब्द शहीदों के लुटे कुनबें का किसको ख्याल रहता है। ग़ज़ल का केन्द्रीय भाव है। अच्छी ग़ज़ल है। पढे़ एवं आनंद लें। 

लघुकथा

        श्री भगवती प्रसाद गहलोत एवं रचना सिंह की लघुकथाएं इस अंक में है। दोनों रचनाएं समसमायिक एवं पठनीय हैं। 

सिनेमा

        सिनेमा के अंतर्गत लेख इरफान खान: जिससे हिंदी सिनेमा सम्मानित होता था। भारतीय सिनेमा में संघर्ष की दास्तान हैं। 

परख

 इसके अंतर्गत पुस्तक समीक्षाएं हैं। पत्रिका के इस अंक में 6 साहित्यिक प्रकाशनों की समीक्षा की गई है। इन किताबों का पर्याप्त प्रचार प्रसार होना चाहिये। जिससे पाठक इनकी रचनाओं का रसास्वादन कर सके। 

और अंत में --

            श्री ललित कार्तिकेय की रचना हीलियम ने विशेष रूप से प्रभावित किया। जिसमें रचना जीवन के विस्तार से निकलकर आगे बढती है। लेख अगस्त 1986 का होते हुये भी इसकी परिस्थितियां एवं विषय आज भी प्रासंगिक है।  लेख समझने पढ़ने योग्य है। 

             इसके अतिरिक्त पत्रिका में सभी स्थायी स्तंभ तथा अन्य रचनाएं हैं अवश्य पढ़ें। 

अन्य विषयों पर लेख पढ़ने के लिये विजिट करे -  First View & Opinion

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