पत्रिका: पाखी, अंक: मार्च 2012, स्वरूप: मासिक, संपादक: प्रेम भारद्वाज, पृष्ठ: 96, मूल्य: 20रू(वार्षिक 240रू.), ई मेल: pakhi@pakihi.in , वेबसाईट:www.pakhi.in , फोन/मो. 0120.4070300, सम्पर्क: इंडिपेडेंट मीडिया इनीशियेटिव सोसायटी, बी-107, सेक्टर 63, नोएड़ा 201303 उ.प्र.
पाखी के इस अंक में मुशर्रफ आलम जौकी, विजय तथा निखिल आनंद गिरि की कहानियां सामाजिक धरातल पर रची बुनी गई है। राकेश कुमार सिंह का उपन्यास अंश इस उपन्यास को पढ़ने की इच्छा जाग्रत करता है। ख्यात कथाकार शैलेन्द्र सागर तथा संदीप मील की रचनाएं वर्तमान शताब्दी में हिंदी कथा साहित्य में नया प्रयोग है जिसमें कथा की सरसता के साथ साथ आलेखों के समान बात को बिना लाग लपेट के कहने का नया तरीका है। संजय कुंदन, प्रत्यक्षा, नीलेश रघुवंशी, असलम हसन, रमेश कुमार वर्णवाल, पावस नीर एवं निशांत भारद्वाज की कविताएं अनेक बार पढ़ने योग्य हैं। ओम राज, रवि वर्मन, मृत्यंुजय प्रभाकर एवं ख्यात समीक्षक, आलोचक विजय बहादुर सिंह के आलेख पत्रिका की विविधता दर्शाते हंै। राजीव रंजन गिरि, भारत भारद्वाज के स्थायी स्तंभ तथा डाॅ. रामप्रकाश एवं डाॅ. रश्मि की लघुकथाएं प्रभावित करती है। ख्यात ग़ज़लकार शहरयार को याद करते हुए ज्ञानप्रकाश विवेक, शेखर जोशी, साधना अग्रवाल तथा रूपसिंह चंदेल ने शहरयार की जीवन शैली को जानने समझने का एक अवसर साहित्य के नए पाठकों व लेखकों को दिया है। पत्रिका की अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती है।
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