पत्रिका: कथन, अंक: जनवरी-मार्च11, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: संज्ञा उपाध्याय, पृष्ठ: 98, रेखा चित्र/छायांकन: जानकारी नहीं, मूल्य: 25रू.(वार्षिक 100), ई मेल: kathanpatrika@hotmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 011.25268341, सम्पर्क: 107, अक्षरा अपार्टमेंटस, ए-3, पश्चिम विहार, नयी दिल्ली 110063
पत्रिका का समीक्षित अंक समकालीन हिंदी सिनेमा पर आंशिक रूप से एकाग्र विशेषांक है। अंक में सिनेमा पर आधारित परिचर्चा ‘भूमंडलीकरण के दौर में भारतीय सिनेमा’ में वर्तमान समय में फिल्मों की विविधता, निर्माण, विषय वस्तु, पाश्चात्य संस्कृति तथा व्यावसायिकता को समेटने का प्रयास किया गया है। यद्यपि केवल परिचर्चा के माध्यम से भारतीय सिनेमा की विशेषताओं, कमियों तथा उपलब्धियों को प्रकाश में नहीं लाया जा सकता है लेकिन फिर भी पत्रिका ने इस दिशा में नया कुछ करने का प्रयत्न किया है। वह सराहनीय हं त्रिपुरारी शर्मा, अनवर जमाल, अनुषा रिज़वी, जिया उस सलाम तथा मिहिर पंड्या के विचारों से पाठक सहमत होगें या नहीं यह उनपर छोड़ देना चाहिए।
स्पेनिश कथाकार माक्वेज की कथारचना तथा उनकी कहानी दुनिया का सबसे खुबसूरत डूबा हुआ आदमी पत्रिका का विशेष आकर्षण है। विशेष प्रस्तुति के अंतर्गत फिल्मी गीतों पर आधारित आलेख कविराज कविता के कान अब मत मरोड़ो(राजेश जोशी) में स्वतंत्रता के पश्चात देश की सामाजिक स्थिति तथा संरचना को आधार बनाया गया है। आलेख सवाल मुकम्मल कहानी का(रमेश उपाध्याय) में कहानी की संरचना, बनावट, कथ्य, शिल्प के साथ साथ उसमें निहित कहानीपन पर विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त कहानी वास्तव में कहानी कब, क्यों और कैसे है? इस पर भी विचार किया गया है। कुबेर दत्त व सुभाष कुशवाहा की कहानियां अच्छी व साहित्य के नए पाठकों के लिए उपयोगी है। जवरीमल्ल पारख, उत्पल कुमार के स्तंभ तथा प्रज्ञा एवं प्रभात रंजन की समीक्षाएं प्रभावित करती है।
स्पेनिश कथाकार माक्वेज की कथारचना तथा उनकी कहानी दुनिया का सबसे खुबसूरत डूबा हुआ आदमी पत्रिका का विशेष आकर्षण है। विशेष प्रस्तुति के अंतर्गत फिल्मी गीतों पर आधारित आलेख कविराज कविता के कान अब मत मरोड़ो(राजेश जोशी) में स्वतंत्रता के पश्चात देश की सामाजिक स्थिति तथा संरचना को आधार बनाया गया है। आलेख सवाल मुकम्मल कहानी का(रमेश उपाध्याय) में कहानी की संरचना, बनावट, कथ्य, शिल्प के साथ साथ उसमें निहित कहानीपन पर विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त कहानी वास्तव में कहानी कब, क्यों और कैसे है? इस पर भी विचार किया गया है। कुबेर दत्त व सुभाष कुशवाहा की कहानियां अच्छी व साहित्य के नए पाठकों के लिए उपयोगी है। जवरीमल्ल पारख, उत्पल कुमार के स्तंभ तथा प्रज्ञा एवं प्रभात रंजन की समीक्षाएं प्रभावित करती है।
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