पत्रिका: पाखी, अंक: अक्टूबर 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: पे्रम भारद्वाज, पृष्ठ: 96, मूल्य: 25रू (वार्षिक: 250 रू.), ई मेल: pakhi@pakhi.in ,वेबसाईट: http://www.pakhi.in/ , फोन/मोबाईल: 0120.4070300, सम्पर्क: इंडिपेंडेंट मीडिया इनीशिएटिव सोसायटी, बी. 107, सेक्टर 63, नोएडा 201303
साहित्य की प्रमुख पत्रिका का समीक्षित अंक साहित्यिक रचनाओ के साथ साथ अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक समसामयिक रचनाओं से युक्त है। अंक में विजय, सी. भास्कर राव, प्रदीप पंत, नसीम साकेती, पंकज सुबीर एवं काजल पाण्डेय की समसामयिक विचारों से युक्त कहानियों का प्रकाशन किया गया है। पत्रिका में प्रकाशित प्रदीप सौरभ का उपन्यास अंश ‘‘देश भीतर देश’’ आज की परिस्थितियों का नए नजरिए से देखने का सफल प्रयास है। जिसे उपन्यास को पूरा पढ़कर और भी अच्छी तरह से जाना समझा जा सकता है। कालम बात जो नागवार गुजरी के अंतर्गत प्रकाशित विचारों में मन्नू भण्डारी, तेजेन्द्र शर्मा, साधना अग्रवाल, नज्म सुभाष तथा मधु के साहित्येतर लघु आलेख, इन आलेखकारों का अपना नजरिया है। यह आवश्यक नहीं है कि पत्रिका का पाठक इन विचारों से इत्तेफाक रखे ही। इस अंक में प्रकाशित मृत्यंुजय प्रभाकर व ओम नागर की कविताएं अधिक प्रभावित नहीं कर सकीं हैं। आदित्य विक्रम सिंह, भारत यायावर, राजीव रंजन गिरि तथा विनोद अनुपम के स्तंभ की सामग्री अच्छी कही जा सकती है। लेकिन खेद का विषय है कि ये आलेख लगातार टाइप्ड होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से आलेखों की गंभीरता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। पत्रिका में प्रकाशित लघुकथाएं, समीक्षाएं तथा अन्य रचनाएं भी भले ही साहित्य की श्रेणी में न आतीं हों लेकिन पढ़ने योग्य हैं।
आभार इस समीक्षा का.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद|
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