
साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय व रचनाकारों की प्रिय पत्रिका का समीक्षित अंक भविष्य में साहित्य के माध्यम से परिवर्तनशील रचनाकारों की रचनाओ से युक्त है। अंक में ख्यात कवि तथा साहित्य मर्मज्ञ नंद किशोर आचार्य जी से ब्रजरतन जोशी की बातचीत साहित्य के साथ साथ वर्तमान परिस्थितियों व उससे उत्पन्न विषमताओं पर गहन विमर्श है। आचार्य भगवत दुबे एवं सुरेन्द्र विक्रम उच्च कोटि के हैं। संपादक ने पता नहीं क्यों सत्यनारायण भटनागर की लघु कहानियों को अंक में स्थान दिया है। जबकि इन रचनाओं में न तो सरसता है और न ही वर्तमान से किसी प्रकार का संवाद ही है। मैं नदिया फिर भी प्यासी(सुरेन्द्र कुमार सोनी) तथा चलत े चलते(जीवन सिंह ठाकुर) कहानियां अपेक्षाकृत रूप से अधिक प्रभावशाली है। रश्मि रमानी की कविता तथा नरेश सांडिल्य के दोहे सटीक हैं। वहीं दूसरी ओर लगता हैै विनय मिश्र पूर्ण तन्मयता से लेखन नहीं कर पा रहे हैं। राजेन्द्र कुमार का यात्रा वृतांत अच्छा बन पड़ा है। नई कलम के अंतर्गत स्वाति आकांक्षा सिंह प्रभावित करती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं प्रभावित करती है। शुक्ल जी के संपादन में पत्रिका में काफी निखार आया है, लेकिन अभी यह निखार रचना की उत्कृष्टता के रूप में आना शेष है।
बड़े अफ़सोस की बात है के जिन सत्यनारायण भटनागर ने सबसे अच्छा लिखा है आपने उन्हें ही फ्लॉप शो बता दिया और इस दो कौड़ी की पत्रिका के बारे में कुछ नहीं कहा.
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