
इस लघु पत्रिका के प्रत्येक अंक में सामग्री का स्तर उच्च होता है। इस अंक की सामग्री भी संजोकर रखने योग्य है। स्मृति शेष के अंतर्गत ‘शिवराम का हमारे बीच से अकस्मात चले जान’ में कवि के संबंध में महेन्द्र नेह ने बहुत सूक्ष्म ढंग से विचार किया है। प्रमोद द्विवेदी, अशोक सिंह, सवाई सिंह शेखावत की कविताएं व अशोक अंजुम की ग़ज़लें विधागत स्तर के साथ साथ वास्तविकता के धरातल पर भी खरी उतरती है। क्रांतिकारी रचनाकार सुधीर विद्यार्थी से अरशद की बातचीत में उनके जीवन के उतार चढ़ाव व सामाजिक-साहित्यिक परिस्थितियांे पर विचार किया गया है। मानव के प्रति मानव के जी की पुकार(अलीक) तथा आदिवासी साहित्य विमर्श(श्रवण कुमार मीणा), सुरेश पण्डित के लेख साहित्य की अपेक्षा वर्तमान समय की वास्तविकता से आम पाठकों को परिचित कराते हैं। अरूण अभिषेक, की कहानियां प्रभावित करती है। रवीन्द्र तेलंग का लेख ‘ए री मैं तो पे्रम दीवानी’ कुछ अधिक फिल्मी हो गया है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं भी स्तरीय व विचार योग्य है।
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