पत्रिका: समावर्तन, अंक: नवम्बर 2010, स्वरूप: मासिक, समग्र संपादक: रमेश दवे, सम्पादक: मुकेश वर्मा, निरंजन श्रोत्रिय, पृष्ठ: 102, मूल्य:25रू.(वार्षिक 250रू.), ई मेल: samavartan@yahoo.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान, उज्जैन म.प्र.
साहित्य जगत के शीर्ष पर स्थापित हो चुकी इस पत्रिका ने अपने अथक परिश्रम से पाठकों को साहित् य सुलभ कराया है। समीक्षित अंक आंशिक रूप से ख्यात कवि केदार नाथ सिंह पर एकाग्र है। पत्रिका के संपादक रमेश दवे से उनकी बातचीत साहित्य के कुछ अनसुझे प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करती हैे। केदार नाथ सिंह जी का आलेख ‘क्या साहित्य बचेगा?’ व उनकी बेटी संध्या सिंह का लेख मेरे बाजी संगह योग्य जानकारी उपलब्ध कराते हैं। डाॅ. नामवर सिंह, दूधनाथ सिंह व अरूण कमल के लेख भी उनकी कविताओं के साथ साथ उनके समग्र व्यक्तित्व पर भलीभांति प्रकाश डाल सके हैं। ‘मैं जिद्दी ढंग का आशावदी हूं’ साक्षात्कार प्रत्येक नवलेखक के लिए पठनीय है। पत्रिका की व्यंग्य केन्द्रित भाग के अंतर्गत ख्यात व प्रतिष्ठित व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी पर अच्दी सामग्री संजोयी गई हैै। व्योमेश शुक्ल, अरूण शीतांश, पवन जैन की कविताएं आज के संदर्भो से जुड़कर नया कुछ कर सकने के लिए प्रयासरत दिखाई देती है। पत्रिका की एकमात्र कहानी ‘सप्तश्रंृगी(सतीश दुबे) एक अच्छी व पठनीय कहानी है। इस बार का रंगशीर्ष सिरेमिक को विभिन्न रूपों में ढालकर दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देने वाली युवा कलाकार शम्पा शाह पर एकाग्र है। राजुला शाह, दीपाली दरोज व नवीन सागर, अनंत गंगोला, मुदिता भण्डारी उनके व्यक्तित्व की विशेषताएं बहुत अच्छी तरह से पाठकों के सामने लाते हैं। राग तेलंग, सुशील त्रिवेदी व विनय उपाध्याय के स्तंभ हमेशा की तरह पत्रिका की उपयोगिता बनाए रखने में सहायक रहे हैं।
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