पत्रिका: कथन, अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2010, स्वरूप: त्रैमासिक, संस्थापक संपादक: रमेश उपाध्याय, सम्पादक: संज्ञा उपाध्याय, पृष्ठ: 98, मूल्य:25रू.(वार्षिक 100रू.), ई मेल mailto:kathanpatrika@hotmail.comtmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 011.25768341, सम्पर्क: 107, साक्षरा अपार्टमेंट्स, ए-3, पश्चिम विहार नयी दिल्ली 110068
कथा प्रधान त्रैमासिकी कथन अपने पूर्ववर्ती अंकों के समान पठनीय रचनाओं से युक्त है। अंक में प्रकाशित कहानियां आम आदमी को समस्याओं के दलदल से निकालकर विकास की मुख्य धारा में लाने की छटपटाहट लिए हुए है। किस्सा अनजाने द्वीप का(जोसे सारामागो, अनु. जितेन्द्र भाटिया), बाजार में बगीचा(सी. भास्कर राव), झूठ(महेश दर्पण), दूसरा जीवन(प्रभात रंजन) तथा दीनबंधु बाबू का मकान(रूपलाल बेदिया) कहानियों में उपरोक्त कथन की सत्यता परखी जा सकती है। ऋतुराज, लीलाधर मंडलोई, लाल्टू तथा प्रदीप जिलवाने की कविताओं में बाज़ारवाद के दुष्परिणामों से जन साधारण के अप्रभावित रहने का आग्रह है। इसे लीलाधर मंडलोई की ‘अपराध का धंधा’ तथा ‘रिश्तों की नमी’ कविताओं से अच्छी तरह से जाना जा सकता है। लगभग यही स्वर प्रदीप जिलवाने की कविता ‘आभास’ में भी दिखाई देता है। वरिष्ठ कवि राजेश जोशी महेश चंद्र पुनेठा की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए उन्हीं दुष्परिणामों से सचेत रहने का आग्रह करते हैं जो हमारी संस्कृति में बाजारवाद से प्रविष्ट हुए हैं। समाज के दलित श्रमजीवी वर्ग को पुनेठा बाजारीकरण के दुष्परिणामों से सचेत रहने का आग्रह करते हैं। आदित्य निगम से पत्रिका की संपादक संज्ञा उपाध्याय की बातचीत समाज के नए नजरिए पर एकाग्र है। प्रश्न ‘सामाजिक परिवर्तन के लिए किया जाने वाला कोई भी आंदोलन वर्तमान समाज की समस्याओं को हल करने के लिए भविष्य की ओर देखता है .....।’ के उत्तर में श्री आदित्य निगम का कहना है कि, ‘‘मसलन माक्र्स के समय को आप देखें तो माक्र्स के पास भविष्य के वे खयाल नहीं थे जो सोवियत रूस के वजूद में आने के बाद माक्र्सवादियों को हासिल हुए।’’ इस उत्तर से लगता है कि माक्र्स का भविष्य के संबंध में कोई चिंतन ही नहीं था। पर माक्र्स का चिंतन भविष्य को लेकर भी उतना ही सटीक था जितनी उन्होंने वर्तमान में परिवर्तन की अपेक्षा समाज से की है। विचार स्तंभ के अंतर्गत मिहिर शाह, रमेश उपाध्याय, मुकुल शर्मा व गोहर रजा ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनिश्चितता पर विचार संग्रह योग्य हैं। पंजाबी के सुप्रसिद्ध कवि परविंदरजीत की कविता ‘‘जन साधारण’’ के अंश ‘मेरी फ्रिकों में वह सब कुछ शामिल है , जो इंसान को इंसान से करता है खारिज’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं व यही कविता का केन्द्रीय भाव भी है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, स्थायी स्तंभ, पत्र समाचार आदि भी प्रभावित करते हैं।
बहुत अच्छा लगा कथन के इस अंक का यह परिचय
जवाब देंहटाएंकथन का परिचय अच्छा है।
जवाब देंहटाएंकथन का परिचय सारगर्भित है. प्रसंगवश आपने मेरी कविताओं का भी जिक्र किया है, कृपया मेरा आभार स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा अखिलेश भाई आपके इतने अच्छे ब्लॉग पर आकर.... इतने अच्छे काम के लिए आपका शुक्रिया कैसे करूं... बस कहूंगा कि बहुत बढ़िया...मेरी अशेष शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंAfter going through detailed review, I felt to read the magazine as soon as I can.
जवाब देंहटाएं'Hasrat' Narelvi.
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