पत्रिका: साहित्य परिक्रमा, अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2010, स्वरूप: त्रैमासिक, प्रबंध संपादक: जीत सिंह जीत, सम्पादक: मुरारी लाल गुप्त गीतेश, पृष्ठ: 64, मूल्य:15रू.(वार्षिक 60रू.), ई मेल: shridhargovind@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 0751.2422942, सम्पर्क: राष्ट्रोत्थान भवन, माधव महाविद्यालय के सामने, नई सड़क, ग्वालियर म.प्र.
अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास द्वारा प्रकाशित यह पत्रिका संस्थान के सजग पहरी श्रीधर गोविंद जी के अथक परिश्रम से दिनप्रति दिन निखरती जा रही है। समीक्षित अंक में प्रकाशित प्रायः सभी आलेख अपनी विषय वस्तु के साथ भलीभांति न्याय कर सके हैं। रामकथा परंपरा एवं प्रवाह(डाॅ. गिरजाशंकर गौतम), कबीर-काव्य और विश्वबंधुत्व का भाव(प्रो. चमनलाल गुप्ता), हिंदी शोध में स्तालिनवार(अशोक कुमार ज्योति) तथा डाॅ. रमानाथ त्रिपाठी कृत रामकथा में नारी विमर्श(रामविलास अग्रवाल) आलेख आज के युवा रचनाकारों का मार्गदर्शन कर उन्हें साहित्य के साथ गहराई तक जुड़ने की पे्ररणा देते हैं। तेलुगु कहानी ‘रेल के इंजन ने सीटी दी’(ऐता चंद्रैया, अनु. ओम वर्मा) तथा विश्वमोहन तिवारी जी का ललित निबंध मेरा नाती सिद्ध करते हैं कि अब हिंदी साहित्य विश्व की किसी भी भाषा के साहित्य से कमतर नहीं है। प्रायः सभी कहानियां आमज न को अभिव्यक्ति देती हैं। इनमें प्रमुख हैं- बेंत(महेश मिश्र), हम किस ओर(अंजु उबाना) तथा अभागिन(सरोज गुप्ता)। इस बार की लघुकथाओं पर कुछ अधिक परिश्रम किए जाने की आवश्यकता थी। लेकिन फिर भी अखिलेश निगम अखिल तथा सीताराम गुप्ता ने इनके साथ अच्छा निर्वाह किया है। कृष्ण चराटे का व्यंग्य अच्छा व मनन योग्य है। कुमार रवीन्द्र, देवेन्द्र आर्य, कुलभूषण कालड़ा, मीना खोंड़, यतीन्द्र तिवारी, विजय त्रिपाठी, अली अब्बास, आचार्य भगबत दुबे, तेजराम शर्मा, नरेन्द्र लाहड़, श्रीमती सुबोध चतुर्वेदी तथा नलिनीकांत की कविताएं भी आमजन के उन अछूते विषयों पर दृष्टिपात करती हैं जिनपर गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व समाचार भी प्रभावित करते हैं।
मान्यवर
जवाब देंहटाएंनमस्कार
बहुत सुन्दर
मेरे बधाई स्वीकारें
साभार
अवनीश सिंह चौहान
पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/
Congratulations, review attracts to go through magazine.
जवाब देंहटाएं'Hasrat' Narelvi
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