
मैसूर हिंदी प्रचार परिषद द्वारा प्रकाशित इस पत्रिका में हमेशा अच्छे व संग्रह योग्य आलेखों को स्थान दिया जाता है। समीक्षित अंक में जीवन और कला...(एस.पी. केवल), भारती का भारतदर्शन(डाॅ. एम.शेषन), हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा(हितेश कुमार शर्मा), हिंदी अंक अस्पृश्य क्यों?(देवेन्द्र भारद्वाज), विश्व भाषा हिंदी(दिलीप शा. घवालकर), अकबर काल में हिंदी का उत्थान(डाॅ. अमर सिंह बधान), समरांगण उपन्यास में चित्रित विविध आयाम(एम. नारायण रेड्डी), जयशंकर प्रसाद की कृतियों में नारी विषयक दृष्टिकोण(मिरगणे अनुराधा), अर्श पर नारी(प्रेमलता मिश्रा) तथा नारी तुम केवल श्रद्धा हो(प्रदीप निगम) लेख सार्थक व अपने अपने विषयों का अच्छा प्रतिपादन करते हैं। पत्रिका का सबसे अच्छा व विश्लेषणात्मक आलेख प्रगतिवादी रचनाकर्मी: केदारनाथ अग्रवाल है। गोविंद शेनाय, इन्द्र सेंगर तथा दिलीप भाटिया की लघुकथाएं प्रभावित करती हैं। नरेन्द्र सिंह सिसोदिया, प्रकाश जीवने, मधुर, रामगोपाल वर्मा, वाई.एस. तोमर यशी तथा लालता प्रसाद मिश्र की कविताएं आज की कविताओं से अलग हटकर हैं। शोधपरक आलेख स्मृति शेष-2 डी.आर.(प्रो.बी.वै. ललिताम्बा) मंे नए ढंग से विचारों को शोध छात्रों के लिए प्रस्तुत किया गया है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं तथा पत्र आदि भी स्तरीय हैं।
पत्रिका से जुड़े सभी महानुभाव (आप भी) बधाई के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंIt's good to view this interesting magazine. Congrates.
जवाब देंहटाएं'Hasrat' Narelvi
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