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पत्रिका के इस अंक में कृष्णदत्त पालीवाल का आलेख मधुर विद्रोही:निर्मल वर्मा, खामोश तुम्हें देखती रहूंगी(इमरोज़) व उन्होंने जो महसूस किया लिखा (सुलोचना राघेय राघव) पठनीय रचनाएं हैं। मीरा सिंह मीर, नीर शबनम, दिवाकर वर्मा, प्रताप सिंह सोढ़ी, शैली बलजीत व सुरेश शर्मा की लघुकथाएं ध्यान आकर्षित करती हैं। तारीक असलम तस्नीम की कहानी शरीफन बुआ भी अपने कथ्य व शिल्प की दृष्टि से उल्लेखनीय है।केदार नाथ सिंह, अवधेश अवस्थी, राजेन्द्र परदेसी, डाॅ. शोभनाथ यादव व सिद्धेश्वर की कविताएं नवीनता लिए हुए हैं। पत्रिका का दृष्टिकोण रचनात्मक व स्वागत योग्य है।
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