पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: फरवरी10, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 56, मूल्य:5रू.(वार्षिकः 50रू.), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. (00)उपलब्ध नहीं, सम्पर्क: हिमाचल प्रदेश प्रिटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला(भारत)
सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा कला पत्रिका हिमप्रस्थ के समीक्षित अंक में प्रकाशित आलेखों में - लोकमंगल के अखण्ड सौन्दर्य का नाम शिव(प्रेम पखरोलवी), पुष्पधन्धा कामदेव के पंचवाण(बनवारी लाल उमर वैश्य), कबिरा खड़ा बाजार में(रमाकांत श्रीवास्तव), संत रविदास के काव्य की दार्शनिकता(ममता चैहान) तथा किन्नौर के कामरू...(मुकेश चंद्र नेगी) उल्लेखनीय हैं। एल.आर. शर्मा की कहानी दशहरे से पहले तथा मामा दिलाराम(श्यामसिंह घुना) पढ़कर प्राचीन भारतीय कथा साहित्य मन में स्थान बनाने लगता है। देवांशु पाल, सुरेश ‘आनंद’ व नरेश कुमार उदास की लघुकथाएं प्रभावित करती हैं। रवि सांख्यान, डाॅ. पीयुष गुलेरी, केशव चंद्र व प्रियंका भारद्वाज की कविताओं मेें नयापन है। पत्रिका की अन्य रचनाएं भी स्तरीय व पढ़ने योग्य हैं।
अच्छा लगा!हिमप्रस्थ की साईट नहीं है लेकिन आप गिरिराज को साईट पर देख सकते हैं
जवाब देंहटाएंhttp://himachalpr.gov.in/giriraj.asp
जानकारी के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंhimprasth masik ka apna alg hi rutbaa hai !log bade shouk se ise padhte hain !iski saaz-sazza ka apna hi rutwaa hai !long liv *himprasth*!
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