पत्रिका-सनद, अंक-10, वर्षः02, स्वरूप-त्रैमासिक, संस्थापक संपादक-फ़ज़ल इमाम मलिक, संपादक-मंजु मलिक मनु, पृष्ठ-76, मूल्य-20रू.(वार्षिक 125रू.), मो. 09868018472, 09350102013, ई मेलः manumallick@rediffmail.com , sanadpatrika@gmail.com , वेबसाईटः http://www.janadesh.in/ सम्पर्क-4.बी, फ्रेन्डस अपार्टमेंट्स, मधु विहार गुरूद्वारा के पास, पटपड़गंज, दिल्ली 110.092 साहित्य संस्कृति की संवाहक पत्रिका सनद ने दो वर्ष के अल्प समय में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। पत्रिका का स्वरूप, कलेवर तथा सामग्री चयन आकर्षित करता है। समीक्षित अंक में समकालीन कहानियों को स्थान दिया गया है। इनमें प्रमुख हैं- उल्टी गिनती(हसन जमाल), मेरे शहर की मिस यूनिवर्स(प्रताप दीक्षित), कफ़र््यू(पुष्पलता कश्यप), बेजबान का फैसला(डाॅ .जहीर आफाक) एवं गणित, हस्तक्षेप(सतीश उपाध्याय)। इन कहानियों में आज की परितिथियों में मनुष्य की तड़प को व्यक्त किया गया है। कविताओं में अशोक आनन, सत्येन्द्र कुमार, केशव शरण, जसवीर चावला, प्रेमशंकर रघुवंशी, अशोक अंजुम तथा भगवान दास जैन प्रभावित करते हैं। इन कविताओं का स्वर न तो अति प्रगतिवादी है, और न ही ये अतिवाद का शिकार हैं। इसलिए इन्हें पाठक अवश्य ही पसंद करेंगे। पत्रिका का सबसे अधिक पठ्नीय व संग्रह योग्य आलेख डाॅ. वीरेन्द सिंह यादव का लेख ‘इस्लाम में मानवतावाद’ है। जिसमें लेखक ने इस्लाम से संबंधित उन भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया है जिसे आम गैर मुस्लिम इस्लाम का एक अहम हिस्सा मानता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं पुस्तक समीक्षा तथा पत्र आदि भी इसे उत्कृष्ट बनाते हैं।
शुभकामना -
जवाब देंहटाएंलगन से लगे रहिए!
आपकी यह ऊर्जा कभी कम न हो!
--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
--
संपादक : सरस पायस
नमस्कार, आप के दुवारा दी जानकारी सच मै बहुत अच्छी लगती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें