
डाॅ. विजय बहादुर सिंह के संपादन में वागर्थ ने साहित्य के कुछ नए मानदण्ड स्थापित किए हैं। सबसे प्रमुख यह है कि नए तथा प्रतिभावान साहित्कारों की सार्थक तथा समाजाउपयोगी रचनाओं को पत्रिका में उन्होंने स्थान दिया है। आज भारत में वागर्थ को छोड़कर एक भी ऐसी पत्रिका नहीं है जिसका अपना लेखक वर्ग न हो। लेकिन वागर्थ में यह सब आज कहीं भी दिखाई नहीं देता है। पत्रिका के समीक्षित अंक में ख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर तथा प्रेमचंद के साहित्य पर विस्तृत रूप से विचार किया गया है। कमल किशोर गोयनका तथा रविरंजन ने अपने अपने आलेखांे में अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। प्रभात त्रिपाठी, राकेश रंजन, चित्रा सिंह, विनोद शर्मा तथा प्रेेमशंकर शुक्ल की कविताएं नएपन लिए हुए है। स्नोवा वार्नाे तथा शुभ्रा उपाध्याय ने अपनी अपनी कहानियों में वर्तमान समय की समस्याओं से जूझते हुए आम आदमी पर अपनी लेखनी के माध्यम से प्रकाश डाला है। साजिद रशीद की कहानी कटे हुए तार पढ़कर प्रेमचंद के प्रारंभिक उर्दू साहित्यिक कहानी की याद आती है। शंकर पुणतांबेकर का व्यंग्य तथा अहम फ़राज ेके आलेख सहेज कर रखने योग्य हैं। वागर्थ की ग़ज़लें सभी स्थायी स्तंभ तथा अन्य रचनाएं पठ्नीय तथा संग्रह योग्य बन पड़ी है। एक सार्थक अंक के लिए कथा चक्र परिवार की शुभकामनाएं।
यह अंक मै पढ रहा हूँ प्रेमचन्द जी के प्रसाद जी को लिखे पत्र ,उनकी आत्मकथा और मराठी मित्र द्वारा लिया उनका सक्षात्कार अद्भुत है
जवाब देंहटाएंअभी यही अंक पढ़ रहा हू~म...
जवाब देंहटाएंhey bhut accha likha ha
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