कथा चक्र पर सन 2014 तक पाखी के अनेक अंकों की समीक्षा की गई है। बड़े हर्ष का विषय है यह कथा चक्र पर 741 वीं समीक्षा है। आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा है।
मित्रों, आइये जानते हैं, पाखी के जुलाई 2021 अंक के बारे में -
जैसा कि आप जानते हैं, हमने समीक्षा नये तरीके से करना शुरू किया है। इसका प्रमुख कारण सर्च इंजन द्वारा किसी Content को प्रमुखता से दिखाना है। उसके लिये जरूरी है कि लेख का अच्छी तरह से Costomised हो। इसलिये भी समीक्षा के परंपरागत ढंग की अपेक्षा यह अधिक उचित प्रतीत होता है। आशा है आपको यह तरीका पसंद आ रहा होगा?
संपादकीय
पत्रिका के संपादकीय का शीर्षक है सिलबट्टा और स्त्री विमर्श। संपादक अपूर्व जोशी ने स्त्री विमर्श पर नये ढंग से विचार किया है। आज भी भारत में स्त्री संबंधी निजी विषयों की चर्चा वर्जित है।
श्री जोशी जी का कहना है कि हमारे यहां स्त्री के मन मस्तिष्क की विशेष प्रकार से कंडीशिनिंग की गई है। पत्रिका में पूर्व में प्रकाशित मुखपृष्ठ का भी जिक्र किया गया है। इस चित्र पर काफी अधिक विवाद हुआ था। उस समय हुये विवाद का जिक्र यहां करने का कोई औचित्य समझ नहीं आता है। संपादक ने स्त्री विमर्श को भारत में सीमित दायरे में होने का जिक्र किया है। उनके अनुसार यह हमारे यहां शोषण तथा उत्पीड़न तक ही सीमित है।
आजकल के युवा पाठक संक्षेप में बात करना एवं सुनना पसंद करते हैं। देश में ऐसा सोशल मीडिया की लोकप्रियता के कारण हुआ है। यह संपादकीय काफी अधिक लम्बा है। जिसे पढ़ने के लिये समय चाहिये। बेहतर होता कि संपादकीय अधिकतम एक हजार शब्दों का होता? आजकल वैसे भी संपादकीय कम ही पढे जाते हैं।
कहानियां
पत्रिका के इस अंक में पांच कहानियां प्रकाशित की गई है। आइये अब उन पर चर्चा करते हैं --
पहली कहानी है गिलहरी और समुद्र। इसके कथाकार हैं श्री मुकुल जोशी। कहानी वर्णनात्मक है। जिसमें गिलहरी सबसे अंत में आती है। एक तरह से गिलहरी यहां प्रतीक है। जिसे समझना आवश्यक है। कहानी में कथाकार स्वयं उपस्थित है। यह कहानी का सकारात्मक पहलू हैं। कहानी समझने के लिये इसे ध्यानपूर्वक पढ़ना होगा। लेकिन जब आप पढ़ लेगें तब इसे समझ जायेगें। अच्छी कहानी है, मनुष्य को समय से कुछ सीखने की प्रेरणा देती है।
ख्यात कथाकार श्री राजनारायण बोहरे की कहानी है, सांझ का सूरज। राकेश बाहर से आया है। सूटकेश रखने के बाद वह घर के बदले हुये हालात देखता है। वह घर की आर्थिक स्थिति देखकर दुखी होता है। वह परिवार के लिये बहुत कुछ करना चाहता है, कुछ करने में कठिनाईयों का अनुभव करता है। कहानी में एक बाद एक दृश्य उपस्थित होते हैं। अच्छी कहानी है, हिंदी के नये पाठकों को भी पसंद आयेगी।
काश, तुम समझ पाते कहानी डाॅ. पूरन सिंह ने लिखी है। कहानी में ग्रामीण वातावरण का चित्रण है। जिसमें प्रत्येक परिस्थिति एवं घटना का विवरण दिया गया है। संवाद छोटे एवं प्रभावशाली है। कहानी मुख्य रूप से धनकुई चाची के इर्दगिर्द रची गई है। काश, तुम समझ पाते को और अधिक स्पष्ट किये जाने की आवश्यकता थी। फिर भी अच्छी कहानी है, कहानी नयेपन का अहसास कराती है।
श्री अश्विनी रूद्र की लिखी कहानी लाल ईट ने प्रभावित किया। यह कहानी समझने में आसान है।
श्री सुशांत सुप्रिय ने अमरीकी कहानी का अनुवाद किया है। इसका शीर्षक है, एक सूर्यास्त का ब्यौरा। अनुवाद होते हुये भी कहानी दुरूह नहीं है। पाठक पढ़कर स्वयं देखें कि इसमें क्या नया है। कहानी लम्बी होते हुये भी अच्छी है।
कविताएं/गजलें
पत्रिका के इस अंक में 5 रचनाएं प्रकाशित की गई हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है-
श्री प्रांजल राय की कविता हमारा समय एक हादसा है एक लम्बी कविता है। जिसमें कवि ने अपने संवाद एवं स्मृतियों के माध्यम से समय के संबंध में विचार रखें हैं।
पाखी के इस अंक में श्री यशवंत कुमार की कविताएं प्रकाशित की गई हैं। इनमें तथागत, वे जो जंग से नहीं लौटे हैं, तुमा सुमा, मुसहर, देश तथा तब जब मैं कलेक्टर बनना चाहता था। कविताओं में कुछ नये प्रयोग किये गये हैं। यह प्रयोग बदलते हुये समाज की ओर संकेत करते हैं।
आदमखोर कविता के रचियता श्री प्रखर पाण्डेय हैं। कविता मनुष्य की मूल प्रवृति की ओर संकेत करती है। अच्छी कविता है।
सुश्री स्वाति अग्रवाल सिंह ने अमलतास कविता शीर्षक से कविता लिखी है।
सुश्री दीपा मिश्रा की लिखी कविता रंग भी रोते हैं, भूत तथा नैहर की पगडंडी है। सभी कविताएं अच्छी है। अवश्य पढ़ें।
उपन्यास
इस भाग में रम्यभूमि उपन्यास की 19 वीं किस्त प्रकाशित की गई है। यह उपन्यास उड़िया भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार कथाकार भवैन्द्र नाथ सेकिया द्वारा लिखा गया है। इसका हिंदी में अनुवाद सुश्री पापोरी गोस्वामी ने किया है। यह धारावाहिक उपन्यास की 19 वीं किस्त है। इससे पूर्व की कड़ी पढ़े बगैर आप इसका आनंद नहीं ले सकते है। उपन्यास पूरा पढ़ने के लिये पाखी के पूर्व अंकों का अवलोकन करें।
साक्षात्कार
श्री विभूति नारायण राय हिंदी साहित्य का जाना पहचाना नाम है। पत्रिका में उनसे हारूल रशीद खान की बातचीत प्रकाशित की गई है। साक्षात्कार में श्री विभूति जी के छात्र जीवन से लेकर आज तक के लेखन तथा जीवन पर चर्चा है। भारतीय समाज, संस्कृति, अल्पसंख्यक तथा अन्य विषयों पर विभूति जी ने अपने विचार रखें हैं। यह हिंदीभाषी पाठकों के साथ ही अन्य भाषा भाषियों के लिये उपयोगी हैं।
आलेख
पत्रिका में दो आलेख हैं। पहला लोकप्रियता के शिखर (विजय विश्वास) तथा दूसरा पितृसत्तात्मक समाज (डॉ. भारती अग्रवाल)।
रामचरित मानस की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। बल्कि यों कहें की यह पहले की अपेक्षा बढ़ी है। इसकी लोकप्रियता के अन्य कारण जानने के लिये पत्रिका में प्रकाशित यह आलेख अवश्य पढ़ें। यह एक शोधालेख है।
वैश्यालयों पर अब तक अनगिनत साहित्य रचा गया है। सभी में वही घिसी पिटी बातें हैं। लेखिका डॉ. भारती अग्रवाल का यह शोधआलेख है। जिसमें उन्होंने विभिन्न संदर्भ ग्रंथों का उल्लेख करते हुये विचार व्यक्त किये हैं।
स्थाई स्तंभ
स्थाई स्तंभ के अंतर्गत तीन आलेख हैं। यह क्रमश विज्ञान शिक्षा... (प्रेमपाल शर्मा), ये सात साल (विनोद अग्निहोत्री) तथा 32 साल का सफर (कृष्ण बिहारी) हैं। सभी स्तंभ पत्रिका के स्तर के अनुरूप हैं। इनमें पाठक के लिये कुछ ना कुछ उपयोगी है।
पुस्तक समीक्षा/मूल्यांकन खण्ड
इस भाग में कुछ पुस्तकों की समीक्षा/मूल्यांकन है। विवरण निम्नानुसार है-
युवावर्ग की महत्वाकांक्षा डॉ. कुमारी उर्वशी
ख्यात कथाकार/उपन्यासकार ममता कालिया के उपन्यास दौड पर समीक्षात्मक दृष्टिकोण
रूहानी प्रेम की दास्तान भावना शेखर
नीलांशु रंजन की पुस्तक खामोश लम्हों का सफर का मूल्यांकन
धैर्य और साहस.. अनिल अग्निहोत्री
सच्चिदानंद जोशी की कृति मैदान मत छोड़ना पर एक नजर
खबरनामा मनोज चौधरी
जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान 2021 प्राप्त कवि कौशल किशोर पर समाचार संक्षेपिका।
पुस्तकें पहुंची शोभा अक्षर
कहानी संग्रह पीठासीन अधिकारी पर संक्षिप्त जानकारी।
इसके अतिरिक्त पत्रिका की अन्य सामग्री भी प्रभावित करती है।
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आभार।पत्रिका की प्रतीक्षा है।
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