कथा चक्र में हम इसके पूर्व भी विश्व हिंदी पत्रिका के अन्य अंकों की समीक्षा कर चुके हैं। यह पत्रिका का वर्ष 2020 अंक है। विश्व हिंदी सचिवालय मॉरिशस प्रतिवर्ष इसे प्रकाशित करता है। सचिवालय द्वारा विश्व हिंदी समाचार त्रैमासिकी भी प्रकाशित की जाती है।
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मित्रों, आइये जानते हैं कि विश्व हिंदी सचिवालय की रचनाओं के बारे में -
संदेश
पत्रिका में प्रकाशित संदेश का विवरण निम्नानुसार है -
पत्रिका में भारत के विदेश मंत्री माननीय एस. जयशंकर जी का संदेश प्रकाशित किया गया है। संदेश में माननीय मंत्री जी ने सचिवालय के प्रयासों की प्रशंसा की है। उन्होंने लिखा है कि विश्व हिंदी सचिवालय, भारत एवं मॉरिशस के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक है। माननीय विदेश मंत्री जी हिंदी के तकनीकी रूप से विकसित एवं समृद्ध हो जाने को विश्व के लिये सुखद मानते हैं।
शिक्षा विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय मॉरिशस की उपप्रधानमंत्री माननीय श्रीमती लीला देवी दुकन लछुमन जी ने पत्रिका के प्रकाशन पर अपने विचार रखे हैं। उन्होंने विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा हिंदी के विकास एवं प्रचार प्रसार में नई तकनीक एवं प्रोद्यौगिकी अपनाने की प्रशंसा की है।
पत्रिका के इस अंक में श्रीमती के. नंदिनी सिंग्ला (भारतीय उच्च आयुक्त पोर्ट लुई मॉरिशस) का संदेश भी है। अपने संदेश में उन्होंने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की सातवीं अधिकारिक भाषा बनाये जाने की दिशा में दोनों देशों के प्रयासों का उल्लेख किया है।
संपादकीय
प्रधान संपादक प्रो. विनोद कुमार मिश्र मानते हैं कि भाषा का प्रवाह नदी के समान है। जब वह संस्कृति के बनाये हुये घाटों से होकर बहती है तब आम जन भाषा के उसी रूप को आदर्श मानकर उसमें डुबकी लगाते हैं। सच भी है हिंदी आज विश्व में आमजन की भाषा बनती जा रही है।
प्रो. मिश्र किसी राष्ट्र के सर्वागीण विकास में भाषा को महत्वपूर्ण मानते हैं। भाषा मनुष्य की मूल्यवान धरोहर है, इसकी कीमत पर कुछ भी हासिल नहीं हो सकता है। संपादकीय वर्तमान संदर्भ में भाषा की महत्ता स्थापित करता है।
डॉ. माधुरी रामधारी (संपादक) ने पत्रिका में हिंदी के प्रतीकात्मक अर्थ पर प्रकाश डाला है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि हिंदी को यहां तक पहुंचने में बहुत संघर्ष करना पड़ा है। हिंदी ने संचार के क्षेत्र में हुई क्रांति का बेहतर उपयोग किया है। संपादकीय सरस रचना का अहसास देता है।
अब रचनाओं की ओर आते हैं -
हिंदी उदभव एवं विकास
इस भाग में तीन आलेख प्रकाशित किये गये हैं। जिनमें हिंदी की उत्पत्ति तथा विकास की जानकारी है।
प्रवासी हिंदी: इतिहास स्वरूप एवं समस्याएं को डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने लिखा है। इस लेख में पूर्व में भारत छोड़कर दूसरे देशों में बसने वाले हिंदी भाषी लोगों पर आधारित है। लेख में नवीन स्थान पर उनके संघर्ष का विवरण दिया गया है। फिजी, मॉरिशस, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका सहित अन्य देशों में हिंदी विकसित अवस्था में है। लेख जानकारीपरक है।
विश्वभाषा हिंदी: व्याप्ति एवं स्वीकृति को डॉ. रणजीत साहा ने लिखा है। लेख में भारत में हिंदी की विकास यात्रा का वर्णन है। यह विषमताओं के बाद भी अच्छी तरह से फल फूल रही है। यह देश के लिये सुखद है।
प्रो. तमरा खोदजायेवा (उज़्बेकिस्तान) ने भारत एवं उज़्बेकिस्तान के संबंधों पर लेख में प्रकाश डाला है। उन्होंने पिछली शताब्दी में स्वतंत्रता के बाद के हिंदी साहित्य के योगदान का उल्लेख किया है। हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद भी उज़्बेकी एवं रूसी में किया गया है। अब उज़्बेकिस्तान के साहित्यप्रेमी भारत आना चाहते हैं। उन्हें यहां भारत की संस्कृति एवं रीतिरिवाजों के बारे में जानना समझना अच्छा लगता है। अच्छा ज्ञानवर्धक लेख है।
हिंदी लिपी साहित्य एवं संस्कृति
इस भाग के अंतर्गत 4 लेख प्रकाशित किये गये हैं। जिनमें साहित्य एवं लिपी की शोधपरक जानकारी है। आइये जानते हैं इन लेखों की विषयवस्तु-
प्रो. खेमसिंह डहेरिया अपने लेख वैश्विक हिंदी विकास एवं विस्तार में विश्व में हिंदी जानने समझने वाले लोगों की जानकारी दी है। आज भारत ही नहीं विश्व के अनेक देशों में हिंदी प्रतिष्ठित है। प्रो. डहरिया ने लेख में भारत में अन्य क्षेत्रिय भाषाओं को हिंदी के विकास में सहायक माना है। जिससे हिंदी का स्वरूप निखरा है। अच्छा लेख है।
मॉरिशस की लेखिका श्रीमती नर्वदा खेदना का लेख रामायण से निःसृत लोकगीत लिखा है। लेख में उन्होंने विस्तार से विस्तार से अपनी बात रखी है। लोकगीत की प्रकृति, भाव, परंपरा तथा प्रस्तुति पर अच्छी जानकारी है। यह हिंदी के नये जानकारों को हिंदी साहित्य से जोड़ने वाली रचना है।
भारतीय संस्कृति: जीवन विवेक की साहित्यिक परंपरा आलेख डॉ. आनंद कुमार सिंह की रचना है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के विकास तथा निर्वाहन में रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों की भूमिका को विस्तार से स्पष्ट किया है। लेख भारत के सांस्कृतिक विकास की देता है।
श्री यशपाल निर्मल का लेख देवनागरी एवं डोगरी भी पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित किया गया है। लेख में डोगरी के विकास तथा निरंतर विकास की जानकारी है। वहीं दूसरी ओर इसका देवनागरी से संबंध कैसा, कितना एवं किस तरह का है। इसे लेखक ने बहुत सुंदर ढंग से स्पष्ट किया है। यह विश्लेषणात्मक लेख संग्रह योग्य है।
हिंदी का ई संसार और जनमाध्यम
इस भाग में कुल 9 आलेख प्रकाशित किये गये हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है-
रेडियो प्रसारण में भाषा कैसे माध्यम बनती है। यह किस तरह से योगदान देती है? हिंदी का इसमें कितना तथा क्या योगदान है? यदि आप यह जानना चाहते हैं तो श्री अरूण कुमार पाण्डेय का लेख हिंदी प्रसारण की भाषा पढ़ें। अच्छी तथा ज्ञानवर्धक जानकारी मिलेगी।
इंटरनेट पर आनलाइन शिक्षण विषय पर अनेक आलेख मिलेगें। लेकिन श्री रोहित कुमार हेप्पी (न्यूजीलैड़) ने अपने लेख में इसे अलग ढंग से स्पष्ट किया है। कोरोना काल में आनलाइन शिक्षण कितना सहायक है, यह जानने के लिये लेख में बहुत कुछ है।
भारत ही नहीं विदेशों में भी हिंदी मीडिया सक्रिय है। यह फल फूल रहा है। आस्ट्रेलिया में हिंदी मीडिया की अच्छी जानकारी के लिये डॉ. जवाहर कर्नावट का लेख सहायक है। जानकारी के लिये पढ़े, आस्ट्रेलिया में हिंदी मीडिया जवाहर कर्नावट
श्रीमती ए राधिका ने भी कोरोना महामारी में आनलाइन शिक्षण मे ंहिंदी युक्तियों पर प्रकाश डाला है।
डॉ. मनीषा शर्मा वेब मीडिया की भूमिका को स्वीकारती है। उन्होंने इसे ब्लाग के संदर्भ में अच्छी तरह से स्पष्ट किया है।
प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ती हिंदी के संबंध में श्री श्याम सुंदर कथूरिया ने नये ढंग से विचार किया है।
हिंदीे के विकास में तकनीक एवं संचार किस तरह से योगदान देते हैं? यह आप डॉ. कुमार भास्कर के लेख से जान सकते हैं।
डॉ. संजय सिंह बघेल डिजीटल मीडिया में हिंदी एवं वैश्विक बाजार लेख में हिंदी की भूमिका स्पष्ट करते हैं।
कोरोना ने किस तरह से हिंदी मीडिया को प्रभावित किया। यदि आप जानना चाहते हैं तो डॉ. शेलेन्द्र शुक्ल का लेख पढ़ें। इसमें उन्होंनें न्यू हिंदी मीडिया के दृष्टिकोण से विचार किया है।
हिंदी शिक्षण
इस भाग में 5 लेख प्रकाशित किये गये हैं। लेख भारत ही नहीं विश्व में हिंदी शिक्षण की जानकारी देते है। इन लेखों का विवरण निम्नानुसार है -
श्री अशोक ओझा ने हिंदी शिक्षण में नये आयाम पर अपनी बात रखी है। यह किस तरह से उपयोगी है, कैसे नये आयाम सहायक हैं। लेख से अच्छी जानकारी मिलती है।
डॉ. प्रेमसिंह ने अमरीका में हिदी के अध्ययन अध्यापन दशा एवं दिशा में वहां हिंदी के प्रचार प्रसार को स्पष्ट किया है।
विश्वपटल पर हिंदी: अध्ययन और अध्यापन लेख डॉ. रामप्रकाश यादव ने लिखा है। यह लेख विदेशों में हिंदी के क्षेत्र में हो रहे कार्य एवं शोध की जानकारी देता है।
डॉ. कुसुम नेपसिक ने भी अमरीका में हिंदी शिक्षण एव प्रशिक्षण की दशा पर प्रकाश डाला है।
मॉरिशस की प्राथमिक पाठशालाओं में हिंदी की पढ़ाई लेख वहां हिंदी के प्रति लगाव को दर्शाता है। लेख को सुश्री आरती हेमराज ने लिखा है।
हिंदी विविध: आयाम
इस भाग में कुल 7 लेख है इनका विवरण निम्नानुसार है-
डॉ. रत्नाकर नराले ने लेख में कनाड़ा में हिंदी के प्रसार को स्पष्ट किया है। उनका लेख हिंदी के प्रसार में कनाड़ा के हिदंू इंस्टीट्यूट का योगदान अच्छा लेख है।
भारत के पूर्व के राज्यों में अब हिंदी स्थापित हो रही है। जानने के लिये पढ़े श्री जैनेन्द्र चौहान का लेख, असम में हिंदी का विस्तार एक अनुशीलन।
अजित्र आर.एस. ने लेख समय एवं सच की भाषा हिंदी पढ़ें। लेख में हिंदी भाषा के वैश्विक स्वीकारता की जानकारी दी गई है।
पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक समन्वय में हिंदी, यह लेख संगीता कुमारी पासी की रचना है। यह रचना भी भारत के पूर्वी राज्यों में हिंदी के विकास पर जानकारी देती है।
अब हिंदी में भी रोजगार की अनेक संभावनायें हैं। जानने के लिये पढ़ें डॉ. पदमाकर पांडुरंग घोडपड़े का लेख, भारतीय तथा वैश्विक पटल पर हिंदी में रोजगार की संभावनायें।
श्रीमती सुभाषिनी एस. लता अपने लेख फिजी हिंदी साहित्य सृजन: प्रो. सुब्रमनी के औपन्यासिंक कृतियों का अवलोकन अच्छी शोधपरक रचना है।
प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी का लेख न्यायपालिका में हिंदी के योगदान पर चर्चा है। जानकारी के लिये पढ़ें लेख, न्यायपालिका और हिंदी अवरोध और चुनौतियां
हिंदी के पथ प्रदर्शक
इस भाग में 6 आलेख हैं। सभी पठनीय रचनाएं है।
डॉ राकेश कुमार दुबे में उपनिवेशों में हिंदी के प्रचार प्रसार का उल्लेख किया है। उनका आलेख, उपनिवेशों में हिंदी भाषा के प्रथम प्रचारक: आर्य समाजी भाई परमानंद पढ़ें।
गांधी जी पर अनेक आलेख लिखे गये हैं। लेकिन कमल किशोर गोयनका का लेख गांधी: लेखकों के लेखक एक अलग ढंग की अनूठी रचना है।
श्री उमेश चतुर्वेदी ने हिंदी प्रादेशिक भाषाएं एवं दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि पर विचार किया है।
डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी का साहित्यिक निबंध पंडित विद्याानिवास मिश्र के निबंधों की भाषिक बनावाट बुनावाट। आलेख निबंध विधा के संबंध में मिश्र जी के संदर्भ में विचार है।
डॉ. नूतन पाण्डेय ने महात्मा गांधी ओर मॉरिशस: एक अटूट संबंध लेख में अच्छी एवं नवीन जानकारी दी है।
डॉ. कमलकिशोर गोयनका का आभार लेख गोदान की हस्तलिखित पाण्डुलिपि एक नवीन प्रस्तुति हैं
हिंदी आज के प्रश्न
इस भाग में कुल 3 आलेख है। यह आलेख हिंदी के वर्तमान स्वरूप, उपयोगिता तथा योगदान पर लिखे गये हैं। उनका विवरण पढ़ें -
श्री गोवर्धन यादव का लेख अंग्रेजी के कारण ही आज हिंदी की उपेक्षा हो रही है। लेखक ने अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। लेख विश्लेषणात्मक रचना है।
क्या वैश्विकरण ने सचमुच हिंदी को कुछ दिया है? यह प्रश्न श्री संजय कुमार उठाते हैं। इसमें काफी हद तक वे सफल भी रहे हैं।
डॉ. काजल पाण्डेय का लेख हिंदी भाषा पर अंग्रेजी का वर्चस्व एक नये ढंग का दृष्टिकोण है। यह लेखके के विचार हैं। हो सकता हैं कथा चक्र के पाठक इससे सहमत ना हों?
श्रद्धांजलि
इस भाग में 3 रचनाएं हैं -
डॉ. अभिषेक शर्मा ने आचार्य नंदकिशोर नवल का आलोचना कर्म पर प्रकाश डाला है।
रेखा सेठी का लेख प्रवासी लेखक का असमंजस और सुषम बेदी का साहित्य एक शोधपरक रचना है।
प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने गिरिराज किशोर: मानवीय सरोकार के अप्रतिम रचनाकार लेख में श्री गिरिराज किशोर जी के योगदान का उल्लेख किया है।
पत्रिका का यह अंक संग्रह योग्य है। विशेष रूप से हिंदी के नये शोध छात्रों को इससे बहुत सहायता मिलेगी।
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अखिलेश शुक्ल
समीक्षक, लेखक, ब्लागर तथा संपादक
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