पत्रिका: हिंदुस्तान जबान,  अंक: दिसम्बर2013, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: डाॅ. सुशीला गुप्ता, मुहम्मद हुसैन परकार, आवरण/रेखाचित्र: निरंजन जोशी, अभिषेक आचार्य, पृष्ठ: 44, मूल्य: 20रू.(वार्षिक 80रू.), ई मेल: ,वेबसाईट: , फोन/मोबाईल: 22812871, सम्पर्क: महात्मा गाॅधी मेमोरियल रिसर्च सेंटर, महात्मा गाॅधी बिल्ंिडग, 7 नेताजी सुभाष रोड़, मुम्बई महाराष्ट्र
हिंदी व उर्दू जबान में विगत 45 वर्ष से निरंतर प्रकाशित हो रही यह पत्रिका हिंदी ही नहीं भारतीय  साहित्य की प्रमुख पत्रिका है। पत्रिका के समीक्षित अंक में कनक तिवारी, रणजीत साहा, संजीव कुमार दुबे के आलेख साहित्य की गाॅधीवादी विचारधारा का उम्दा प्रस्तुतिकरण है। डाॅ. श्रीराम परिहार का ललित निबंध बचाल ले थोड़ी सी धरती थोड़ा सा आकाश सरस व पढ़ने में रूचिकर है। ख्यात कवि लेखक लीलाधर जगूडी, लेखिका व साहित्यकार सुधा अरोड़ा एवं सविता भार्गव की कविताएं उत्कृष्ट हैं। मुर्शरफ आलम जौकी की कहानी समाज की मतभिन्नताओं व समानताओं पर नए सिरे से विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। पद्मजा शर्मा की कहानी किस्सागो अंदाज में आगे बढ़ती हुई आदि से अंत तक बांधे रखती है। 
ऋता शुक्ल का उपन्यास अंश, ख्यात साहित्यकार गंगाप्रसाद विमल से कला नाथ मिश्र जी की बातचीत पत्रिका के अन्य आकर्षण हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं, स्थायी स्तंभ व समाचार आदि भी उल्लेखनीय है। उर्दू खण्ड की रचनाएं भाषागत विशेषताओं के साथ साथ भारतीय समाज का अच्छा चित्रण प्रस्तुत करता है। 

2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत प्रभावशाली पत्रिका बधाई के साथ मेरी रचना अंश -
    आपका भू - स्वर्ग - पाताल
    दुष्टों को खा जाएगा काल
    चमकेंगे जन - जन का भाल
    सबके सब होंगे खुशहाल
    भाग्य जागेगा, कूड़े करकट का
    कवि हूँ मैं सरयू -तट का

    परब्रह्म का प्राप्ति मार्ग
    सनत कुमार जी बताएँगे
    सरस्वती -उद्गम स्थल पर
    अश्वमेध यज्ञ कराएंगे
    खेती सीचे पानी पुरवट का
    कवि हूँ मैं सरयू -तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(11)
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    शिव - अग्रज सनकादि मुनीश्वर
    माथे चरणोद चढ़ाएंगे
    स्वर्ण सिंहासन पर उन्हें आप
    ससम्मान विठाएँगे

    शब्द - अर्थ होगा, उद्भट का
    कवि हूँ मैं सरयू - तट का

    अन्न- औषधि छिपा के पृथ्वी
    सृष्टि में, रूप बदल कर डोले
    प्रजा भूख, से हो गई व्याकुल
    श्री मैत्रेय , विदुर से बोले
    जीवन सभी का अटका – अटका
    कवि हूँ मैं सरजू -तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(12)
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    प्रजा करुण – क्रंदन सुन पृथु ने
    शस्त्र उठा लिया हाथ में
    पृथ्वी गौ का रूप पकड़ कर
    थर – थर – थर – थर लगी कांपने
    सर पृथ्वी ने पाँव पर पटका
    कवि हूँ मैं सरजू -तट का
    तब गौ रुपी पृथ्वी ने आकर
    विनीत भाव से नमन किया
    आप जगत उत्पत्ति – संहारक
    विश्व - रचना का मन किया
    मेरा हाल तो नटिनी - नट का
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(13)
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    मेरी अन्न – औषधि सब
    राक्षस मिलकर खा जाते थे
    सही ढंग से जिन्हें था मिला
    वे अन्न – औषधि नहीं पाते थे
    यह सब देख के माथा चटका
    कवि हूँ मैं सरजू -तट का

    जनमेजय – सगर और भगीरथ
    आदि कई हुये थे समरथ
    अयोध्या की आगे बढ़ी कहानी
    आये चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ
    राज्य हुआ शुरू दशरथ का
    कवि हूँ मैं सरयू – तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(14)
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    सरयू - गंगा दोनों बहनों का
    हिमालय में उद्गम - स्थल है
    काली नदी नाम धारण कर
    बहुत दूर तक वही पहल है
    घाघरा नाम कहावत का
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का

    राम- लक्ष्मण – भरत – शत्रुघ्न
    चारो पुत्रों नें जन्म लिया
    चाँदीपुर ,चंद्रिका धाम में जाकर
    गुरुजनों से शिक्षा ग्रहण किया
    ज्ञान मिला हमको घट –घट का
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(15)
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    गंगा – सरयू मिलन जहां पर
    सभी वहाँ खेलने जाते थे
    और वहीं आखेट की विद्या
    गुरु शृंगी से पाते थे
    रहा नहीं कोई भी खटका
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का

    विश्वामित्र यज्ञ- रक्षा को
    श्री राम – लक्ष्मण हुये रवाना
    ताड़का और सुबाहु जब मरा
    खुशियों का न रहा ठिकाना
    ध्यान लगाये जनकपुर – गंगा तट का
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का / सुखमंगल सिंह (१६)
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    धनुष – यज्ञ के बाद जुड़ गये
    सीताराम – सीताराम
    सीता – हरण साधु बन किया
    रावण का हो गया काम तमाम
    कथा बन गई ,राम – राम रट का
    कवि हूँ मैं सरजू - तट का

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    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(17)
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