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लघुपत्रिका दौर की 39 वर्ष पुरानी यह पत्रिका रचनात्मकता व विविधता में किसी व्यवसायिक पत्रिका से कमतर नहीं है। समीक्षित अंक में ख्यात कवि श्रीकांत जोशी की काव्य यात्रा पर मणिशंकर आचार्य का आलेख उनके व्यक्तित्व पर भलीभांति प्रकाश डालता है। कहानी सारा जहां हमारा(चंद्रप्रकाश पाण्डेय), वटवृक्ष(सरला अग्रवाल), पत्थर हुए लोग(तारिक असलम तस्लीम) में रोचकता के साथ साथ समयानुकूल विशिष्टताएं भी दिखाई पड़ती हैं। कृष्ण कुमार यादव का आलेख तथा ओंमकारनाथ चतुर्वेदी का व्यंग्य मां बहुत भूख लगी है अच्छी रचनाएं हैं। श्रीकांत जोशी, हरदयाल, राजेन्द्र परदेसी, शकूर अनवर, देवेद्र कुमार मिश्रा, मनोज सोनकर, रमेश सोबती तथा नंद चतुर्वेदी जी की कविताओं में पाठक के लिए बहुत कुछ है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं तथा पत्र भी प्रभावित करते हैं।
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