पत्रिका: व्यंग्य यात्रा, अंक: जून2011, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: प्रेम जनमेजय, पृष्ठ: 112, मूल्य: 20रू (वार्षिक: 80 रू.), ई मेल: ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 011.25264227, सम्पर्क: 73, साक्षर अपार्टमेंट, ए-3, पश्चिम विहार, नई दिल्ली 110.063
व्यंग्य विधा पर एकाग्र साहित्य की इस पत्रिका का प्रत्येक अंक किसी न किसी व्यंग्यकार पर आंशिक रूप से एकाग्र होता है। समीक्षित अंक भी श्रेष्ठ व्यंग्यकार हरीश नवल पर एकाग्र है। अंक में उनके समग्र व्यक्तित्व पर त्रिकोणीय के अंतर्गत अच्छे व सारगर्भित लेखों का प्रकाशन किया गया हैै। पत्रिका के संपादक प्रेम जनमेजय ने उनके विशिष्ठ अंदाज को अपने लेखन का आधार बनाया है। इस लेख में उनके समूचे लेखन को संक्षेप में समेटने का प्रयास किया गया है। सुभाष चंदर एवं नरेन्द्र मोहन के आलेख के नवल जी पर एकाग्र संस्मरणात्मक आलेख अच्छे हैं व प्रभावित करते हैं। मधुसूदन पाटिल व सविता राणा ने भी अपने अपने आलेखों में नवल जी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलूओं पर विचार किया है। पाथेय के अंतर्गत मराठी की चुनी हुई श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया गया हैै। श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर, रामगणेश गडकरी एवं पु.ल. देशपाण्डे की रचनाएं व्यंग्य की अंतर्रात्मा के साथ भलीभांति न्याय कर सकी हैं। मराठी व्यंग्य पर उषा दामोदर कुलकर्णी, मीरा वाडे एवं श्याम सुुंदुर घोष के लेख सहेज कर रखने योग्य हैें। व्यंग्य रचनाओं में प्रदीप पंत, सुशील सिद्धार्थ, समीर लाल समीर, सुधीर ओखडे, उमा बंसल एवं लाल्यित ललित के व्यंग्य सटीक कहे जा सकते हैं। नरेश सांडिल्य, नवल जायसवाल, विश्वनाथ एवं उपेंद्र कुमार की व्यंग्य कविताएं भले ही नागार्जुन के व्यंग्य स्तर को न स्पर्श कर सकीं हो पर अपनी छाप छोड़ने मेें बहुत हद तक सफल कही जा सकती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व आलेख भी स्तरीय हैं जिनमें साहित्य के विशुद्ध पाठक के लिए काफी कुछ है।
Naval ji ko bdhai.Is ank ko padhne ki utsukta badh gai hai.
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