पत्रिका-पाखी, अंक-दिसम्बर.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-अपूर्व जोशी, पृष्ठ-168, मूल्य-20रू.(वार्षिक 240रू.), सम्पर्क-इंडिपेन्डेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी, बी.107, सेक्टर.63, नोएडा 201303 उ.प्र., फोनः(0120)4070300, ईमेलः pakhi@pakhi.in , pakhi@thesundaypost.in ,
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पाखी का सफरनामा
साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में अल्प समय में पाखी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को स्थापित किया है। पत्रिका का स्वरूप विचारात्मक, विश्लेषणात्मक है। पत्रिका के अंकों में वर्तमान समय और उसकी चुनौतियों के लिए साहित्य की भूमिका व उपयोगिता के संबंध में समझा जाना जा सकता है।
श्री प्रभाष जोशी जी पर एकाग्र अंक
समीक्षित अंक को ख्यात पत्रकार साहित्यकार व जनसत्ता के पूर्व संपादक स्व. श्री प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। स्व. प्रभाष जी पर प्रकाशित संस्मरणों में प्रत्येक संस्मरणकार ने उनकी मिलनसारिता, विषय का गहन ज्ञान तथा अध्ययन व प्रत्येक को साथ लेकर चलनेे की उनकी योग्यता पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
श्री जोशी जी के संबंध में विद्धानों के विचार
विशेष रूप से ख्यात आलोचक साहित्यकार डाॅ. नामवर सिंह,पुण्य प्रसून वाजपेयी, प्रियदर्शन, अपूर्व जोशी, गोपाल जोशी, कुलदीप नैयर, गुरदयाल सिंह, राजेन्द्र यादव एवं रवीन्द्र त्रिपाठी के आलेख उनके बारे में और अधिक जानने की इच्छा जाग्रत करते हैं।
कहानियां
इस अंक मंे अम्लता(संतोष दीक्षित), कनचोदा(अरूण कुमार), कपाल क्रिया(माधव नागदा), घासफूस का घोड़ा(शंशांक घोष) एवं नन्हें मुन्नें प्रचार के सितारे(अंबल्ला जनार्दन) कहानियां प्रकाशित की गई हैं। कपाल क्रिया तथा घासफूस का घोड़ा कहानियां आम जन के आसपास के घटनाक्रम को अपने आप में समेटते हुए उसे विश्व से जोड़ने का प्रयास करती दिखाई देती है।
कविताएं गीत एवं ग़ज़लें
इमरोज, डाॅ. अंजना संधीर तथा नरेश कुमार टांक की कविताएं तथा ओम प्रकाश अडिग, दिनेश सिंदल एवं प्रभु त्रिवेदी के गीत ग़ज़ल बहते हुए जल के किनारे से टकराने उत्पन्न स्वर का अहसास कराते हैं।
आलेख एवं अन्य रचनाएं
रजनी गुप्त तथा विजय शर्मा का आलेख एवं आंधी के आम गरीब के राम(उपन्यास अंश-अरूण आदित्य) भी अच्छी रचनाएं हैं। राजीव रंजन गिरि की रचना प्रभावित करती है।
व्यंग्य एवं समसामयिक लेख
प्रदीप पंत का व्यंग्य, विनोद अनुपम का आलेख इंटरनेट बनाम अभिनेता तथा रवीन्द्र त्रिपाठी का आलेख ओबामा को साहित्य का नोबल पुरस्कार विचारणीय रचनाएं हैं। प्रतिभा कुशवाह के आलेख ‘और अब नामवर सिंह का ब्लाग’ ने मुझे चैका दिया। आलेख पढ़कर रोचक तथा उपयोगी जानकाीर प्राप्त हुई। तोल्स्तोय पर रूपसिंह चंदेल का आलेख अधिक जानकारी देने में असमर्थ लगा।
लघुकथाएं
खेमकरण सोमन, प्रमोद कुमार चमोली तथा योगेन्द्र शर्मा की लघुकथाएं ठीक ठाक हैं इनमें अभी वह पैनापन नहीं आया है जो लघुकथाओं की विशेषता है।
साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा
साहित्यिक पुस्तकों/संग्रह की समीक्षा में केवल प्रतिभा कुशवाह ने पुस्तक पढ़कर समीक्षा की है। लगता है अन्य ने केवल सरसरी तौर पर देखकर ही अपने विचार व्यक्त कर दिए हैं।
पत्रिका की प्रस्तुति
पत्रिका का कलेवर साज सज्जा तथा समयानुकूल प्रस्तुति आकर्षित करती है।
अच्छे अंक के लिए बधाई।
बहुत अच्छा ...
ردحذفपाखी का ये अंक वाकई संग्रहणीय है। अभी संपन्न किया है पढ़ना।
ردحذفप्रभाष जोशी पर केंद्रित यह अंक स्मरणीय बन पड़ा है। बधाई।
ردحذفपाखी जैसी उत्कृष्ट कविताएँ अन्य किसी पत्रिका में नहीं छपतीं
ردحذفपाखी से जुड़ना चाहता हूँ ! -रंजीत रामयो
ردحذفpakhi vaakai bahut achchhi patrika hai ..
ردحذفBahut achha laga
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