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प्रतिष्ठित पत्रिका समावर्तन का यह अंक संयुक्त रूप से नागार्जुन एवं शरद जोशी जी पर एकाग्र है। यह भी संयोग है कि दोनों ही व्यंग्य विधा के अप्रतिम हस्ताक्षर हैं। जहां नागार्जुन का व्यंग्य कविता के माध्यम से आम जन तक पहुंचता है वहीं दूसरी ओर शरद जोशी का व्यंग्य शब्दों के माध्यम से पाठक के अंतर्मन को विलोड़ित करता है। इस अंक में इन दोनों ख्यात साहित्यकारों पर प्रकाशित सामग्री सहेजकर रखने योग्य है। रमेश दवे, नामवर सिंह, बागेश्री चक्रधर, निवेदिता शर्मा, अनामिका तथा ख्यात कवि लीलाधर मंडलोई के नागार्जुन के समग्र साहित्य पर एकाग्र आलेख पत्रिका की उपलब्धि है। इंदिरा दांग्री की कहानी शहरी एक अच्छी व समाज के आमजन से जुड़ी रचना है। जिसमें वह सब कुछ है जिसकी अपेक्षा हर कोई करता है। मनोज कुमार झा की निरंजन श्रोत्रिय जी द्वारा चुनी गई कविताएं व उर्दू कहानी चश्मदीद गवाह(अनुवाद फरहत जहां) से पाठक को बहुत कुछ मिलता है। श्रीकांत जोशी, ब्रज श्रीवास्तव, बनाकर चंद्र, मनोज जैन ज्ञानप्रकाश विवेक की कविताएं रचनाएं अच्छी हैं। शरद जोशी जी पर प्रकाशित आलेखों में रमेश दवे, शिव शर्मा, सूर्यबाला तथा सूर्यकांत नागर के लेख अच्छे व जानकारीपरक हैं। रंगशीर्ष के अंतर्गत नरेश सक्सेना जी पर गिरीराज किशोर जी, राजशेखर व्यास के लेख प्रभावित करते हैं। राग तेलंग, विनय उपाध्याय, मुकेश वर्मा तथा अमरीक सिंह दीप के स्तंभ सहित अन्य सामग्री में पठनीयता है। इस अच्छे अंक के लिए पत्रिका से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति बधाई का पात्र है।
badhiya samiksha
जवाब देंहटाएंबधाइयाँ अखिलेशजी. आपकी निरंतता को सलाम.
जवाब देंहटाएं(अक्षय आमेरिया)
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