पत्रिका: पाण्डुलिपि, अंक: जनवरी-मार्च 2011, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: जयप्रकाश मानस, पृष्ठ: 422, मूल्य: 25रू(वार्षिक 100रू.), ई मेल: pandulipatrika@gmail.com , वेबसाईट: http://www.pramodverma.com/ , फोन/मोबाईल: 09424182664, सम्पर्क: एफ-3, छ.ग. मा.शि.मं. आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा रायपुर 492001 छ.ग.
पाण्डुलिपि के अभी तक केवल तीन अंक ही प्रकाशित हुए हैं। पत्रिका ने एक वर्ष से कम समय में साहित्य जगत में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज करायी है। इस अंक में विविधतापूर्ण अच्छी साहित्यिक सामग्री का प्रकाशन किया गया है। चंद्रकांत देवताले, नंद चतुर्वेदी, श्रीप्रकाश मिश्र, दिविक रमेश तथा प्रवासी कवि सुभाष काक की कविताएं विशिष्ठ हैं। सदानंद शाही, गोविंद माथुर, अमरजीत कांके, निर्मला पुतुल, हरेप्रकाश उपाध्याय, अशोक कुमार पाण्डेय, जसबीर चावला, कुमार सुरेश एवं मोहन सगोरिया की कविताएं पाठक को आस्वस्त करती हैं कि कविता को मरती हुई विधा समझना भारी भूल होगी। विमर्श के अंतर्गत शंभु गुप्त, ज्योतिष जोशी, प्रफुल्ल कोलख्यान के लेख पत्रिका के इस अंक को स्वरूचिपूर्ण बनाते हैं। शरद सिंह, विनोद मिश्र, जयश्रीराय तथा इंदिरा दांगी की कहानियों में विषय प्रस्तुतिकरण का अनोखा अंदाज पाठक को बांधे रखने में सफल रहा है। अख्तर अली, विजय शर्मा व डाॅ. पदमा शर्मा के लेखों में समसामयिक मुद्दों को उठाया गया है। पुरषोत्तम अग्रवाल, गंगासहाय मीणा, रूपचंद्र शास्त्री मयंक, हरि ठाकुर, गौतम सचदेव की विधाविविधता युक्त रचनाएं लेखन में नई सोच का परिणाम है। छंद रचनाओं में बुद्धिनाथ मिश्र, ज्ञानप्रकाश विवेक, योगेश शर्मा व्योम एवं महावीर शर्मा के गीतों में सांगीतिकता है। दो आब का कवि(प्रमोद वर्मा), बुलबुल और गुलाब(आस्कर वाइल्ड-अनुवादः द्विजेन्द्र द्विज), उड़िया कविताएं(अनुवाद-दिनेश माली) एवं तोलस्तोय और साइकिल(डाॅ. अभिजात) जैसी रचनाएं देश की किसी भी साहित्यिक पत्रिका में नहीं मिलेंगी। बलराम अग्रवाल, राजेन्द्र सोनी व सुशील अग्रवाल की लघुकथाएं तथा शंभुलाल शर्मा की बाल कविताएं भी उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त पत्रिका में कमल किशोर गोयनका, अच्युतानंद मिश्र, सुरेश पडित, बालकवि बैरागी, प्रताप सहगल, जगदीश चतुर्वेदी के विविधतायुक्त लेख जानकारीपरक हैं। एक साथ इतनी अधिक विविधतापूर्ण रचनाओं को जुटाना व संपादन करना वास्तव में दुरूह कार्य है। इस कार्य को जयप्रकाश मानस,अशोक सिंघई व उनकी टीम ने बहुत ही अच्छे ढंग से किया है।
पाण्डुलिपि के अभी तक केवल तीन अंक ही प्रकाशित हुए हैं। पत्रिका ने एक वर्ष से कम समय में साहित्य जगत में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज करायी है। इस अंक में विविधतापूर्ण अच्छी साहित्यिक सामग्री का प्रकाशन किया गया है। चंद्रकांत देवताले, नंद चतुर्वेदी, श्रीप्रकाश मिश्र, दिविक रमेश तथा प्रवासी कवि सुभाष काक की कविताएं विशिष्ठ हैं। सदानंद शाही, गोविंद माथुर, अमरजीत कांके, निर्मला पुतुल, हरेप्रकाश उपाध्याय, अशोक कुमार पाण्डेय, जसबीर चावला, कुमार सुरेश एवं मोहन सगोरिया की कविताएं पाठक को आस्वस्त करती हैं कि कविता को मरती हुई विधा समझना भारी भूल होगी। विमर्श के अंतर्गत शंभु गुप्त, ज्योतिष जोशी, प्रफुल्ल कोलख्यान के लेख पत्रिका के इस अंक को स्वरूचिपूर्ण बनाते हैं। शरद सिंह, विनोद मिश्र, जयश्रीराय तथा इंदिरा दांगी की कहानियों में विषय प्रस्तुतिकरण का अनोखा अंदाज पाठक को बांधे रखने में सफल रहा है। अख्तर अली, विजय शर्मा व डाॅ. पदमा शर्मा के लेखों में समसामयिक मुद्दों को उठाया गया है। पुरषोत्तम अग्रवाल, गंगासहाय मीणा, रूपचंद्र शास्त्री मयंक, हरि ठाकुर, गौतम सचदेव की विधाविविधता युक्त रचनाएं लेखन में नई सोच का परिणाम है। छंद रचनाओं में बुद्धिनाथ मिश्र, ज्ञानप्रकाश विवेक, योगेश शर्मा व्योम एवं महावीर शर्मा के गीतों में सांगीतिकता है। दो आब का कवि(प्रमोद वर्मा), बुलबुल और गुलाब(आस्कर वाइल्ड-अनुवादः द्विजेन्द्र द्विज), उड़िया कविताएं(अनुवाद-दिनेश माली) एवं तोलस्तोय और साइकिल(डाॅ. अभिजात) जैसी रचनाएं देश की किसी भी साहित्यिक पत्रिका में नहीं मिलेंगी। बलराम अग्रवाल, राजेन्द्र सोनी व सुशील अग्रवाल की लघुकथाएं तथा शंभुलाल शर्मा की बाल कविताएं भी उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त पत्रिका में कमल किशोर गोयनका, अच्युतानंद मिश्र, सुरेश पडित, बालकवि बैरागी, प्रताप सहगल, जगदीश चतुर्वेदी के विविधतायुक्त लेख जानकारीपरक हैं। एक साथ इतनी अधिक विविधतापूर्ण रचनाओं को जुटाना व संपादन करना वास्तव में दुरूह कार्य है। इस कार्य को जयप्रकाश मानस,अशोक सिंघई व उनकी टीम ने बहुत ही अच्छे ढंग से किया है।
एक बहुत अच्छी जानकारी जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा...आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी सुन्दर समीक्षा.
जवाब देंहटाएंजय प्रकाश जी!
जवाब देंहटाएंपांडुलिपि जैसी सर्वांगीण पत्रिका दुर्लभ है. मेरी ओर से बधाई स्वीकारें!
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