पत्रिका: परिकथा, अंक: जनवरी-फरवरी 2011, स्वरूप: द्वैमासिक, संपादक: शंकर, पृष्ठ: 125, मूल्य: 35रू(वार्षिक 275रू.), ई मेल: parikatha.hindi@gmail.com ,वेबसाईट: http://www.parikathahindi.com/ , फोन/मोबाईल: 0129 4116726, सम्पर्क: 96, बेंसमेंट, फेस-3, इरोज गार्डन, सूरजकुण्ड रोड़, नई दिल्ली 110044
परिकथा ने अल्प समय में ही साहित्य जगत में अपनी पहचान कथा साहित्य के माध्यम से स्थापित की है। अंक में प्रमुख रूप से कहानियां प्रकाशित की गई है। अधिकांश कहानीकार युवा हैं, संभवतः इसलिए इस अंक को नवलेखन अंक कहा गया है। प्रायः सभी कहानियों में विषय की अपेक्षा विषय वस्तु के प्रस्तुतिकरण पर अधिक ध्यान दिया गया है। यह आजकल के कहानीकारों द्वारा विशेष रूप से चलन में लाया गया निरर्थक प्रयास है। इससे कहानी लम्बे समय तक प्रभावित करने में सफल नहीं हो पाती है। लेकिन फिर भी सरसता व कथा तत्व के कारण इन कहानियों में विशिष्ठता है। प्रमुख कहानियां है - इस मोड़ पर आता हूं(गौतम राजऋषी), दाहिनी आंख(इंदिरा दांगी), चांदी का रूपया(ओम भारद्वाज), धरती मां(मो. अनवर खान), चांद, रोटी और चादर की सलवटें(उमा), दीनानाथ जी सठिया गए हैं(शिवअवतार पाल), मुक्ति(अनु सिंह) एवं परिगमन(जितेन्द्र बिसारिया) प्रमुख है। अरविंद, मनोज पाण्डेय, रूपाली सिन्हा, दीपक मशाल, राजीव रंजन, आशुतोष चंदन, ओम नागर, राजेश हर्षवर्धन, सुमन सिंह तथा कपिल देव पाण्डेय की कविताएं नव कविता कही जा सकती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं अपेक्षित प्रभाव डालने में असफल रही है।
सुंदर जानकारी जी, धन्यवाद
ردحذفसमीक्षा का आभार.
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मुझे इस पत्रिका की वार्षिक सद्स्य् या चाहिये. हो सके तो एक नमुने की प्रति भेजें.
ردحذفRaj Rishi Sharma ASHIANA,Nagbani College Road,
Post Office DUMANA 181206 (jammu Tawi)
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