पत्रिका : विश्व हिंदी पत्रिका, अंक : द्वितीय, स्वरूप : वार्षिक, संपादक : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र, पृष्ठ : 205, रेखा चित्र/छायांकन : जानकारी उपलब्ध नहीं, मूल्य : प्रकाशित नहीं, ई मेल : whsmauritius@intnet.mu , वेबसाईट : उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 002306761196, सम्पर्क : World Hindi Secretariat, Swift Lane, Forest Side Mauritius
मॉरिशस से प्रकाशित पत्रिका विश्व हिंदी पत्रिका का समीक्षित अंक साहित्यिक रचनाओं से भरपूर है। अंक में विश्व के विभिन्न भागों में निवासरत हिंदी विद्वानों के आलेख प्रकाशित किए गए हैं। प्रकाशित आलेख विश्व में हिंदी भाषा एवं साहित्य की उपयोगिता व वैश्विक स्तर पर स्वीकारता पर प्रकाश डालते हैं। प्रकाशित प्रमुख लेखों में साहित्य पुरूष भारतेंदु(डॉ. रत्नाकर पाण्डेय), हिंदी का सबसे पहला कवि सम्मेलन(श्रीनारायण चतुर्वेदी), अमरीका में हिंदी एक सिंहावलोकन(सुषम बेदी), रोमानिया में हिंदी का स्वर व स्वरूप(रणजीत साहा), फीजी में हिंदी : नए आयाम(शरद कुमार), सूरीनाम में हिंदी : वर्तमान स्थिति(भावना सक्सेना), दक्षिण अफ्रीका में हिंदी का अनोखा सफर(चंपा वशिष्ठमुनि), इटली में हिंदी भाषा शिक्षण(डॉ. घनश्याम शर्मा), दक्षिण कोरिया और हिंदी : हार्दिक मिलन दो देशों का(प्रो.दिविक रमेश), दक्षिण कोरिया में हिंदी शिक्षण(किम ऊ जो), हिंदी उर्दू फ्लेगशिप : संभावनाओं की ओर(विष्णु शंकर), फिनलैंड में हिंदी(डॉ. अनीता गांगुली), नीदरलैंड में हिंदी की स्थिति और विकास(पुष्पिता अवस्थी) के लेखों में विश्व स्तर पर हिंदी के लिए हो रहे विकास व कि्रया कलाप की जानकारी है। इनसे पता चलता है कि आज हिंदी किस तरह से चारों ओर अपना परचम लहरा रही है। अन्य लेखों में मॉरिशस मे ंहिंदी : वर्तमान स्थिति(सत्यदेव सेंगर), मॉरिशस में हिंदी : एक सर्वेक्षण(जयप्रकाश कर्दम), वियतनाम में हिंदी(साधना सक्सेना), न्यूजीलैंड में हिंदी भाषा और संस्कृति(सुनीता नारायण), हिंदी धैर्य की भाषा हैउत्तेजना और हिंसा की नहीं(बालकवि बैरागी), संयुक्त राष्ट्र में हिंदी पृष्ठभूमि, प्रस्ताव एवं पहल(नारायण कुमार) प्रभावित करते हैं। पत्रिका ने हिंदी भाषा, शैली व साहित्य पर विविधतापूर्ण आलेख प्रकाशित किए हैं जो शोध छात्रों सहित आम पाठकों के लिए समान रूप से संग्रह योग्य हैं। इनमें हिंदी की विदेशी शैलियां(विमलेश कांति वर्मा), हिंदी उर्दू और हिंदुस्तानी(रवि श्रीवास्तव), भारतीय समाज में बहुभाषिकता और हिंदी(सदानंद शाही), विस्थापन का दर्द और ॔मानस’ का मरहम(सुरेश ऋतुपर्ण), मॉरिशस का भारतीय आप्रवासी स्वर(अभिमन्यु अनंत), प्रवासी हिंदी कहानियों में वृद्घावस्था(विजय शर्मा), हिंदी का प्रचार प्रसार ही एकमात्र धर्म(जितेंद्र कुमार मित्तल), कम्प्यूटर और हिंदी(लीना मेहदेले), वैश्विक हिंदी की चौतरफा बयार(राकेश पाण्डेय), उपनिवेशवाद की समाप्ति(चरणदास महंत) शामिल है। अंक में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का उद्घाटन भाषण एवं सर शिवसागर रामगुलाम का अध्यक्षीय भाषण भी साहित्यप्रेमियों की जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में शामिल होने वाले विद्वानों के संस्मरण सहेजकर रखने योग्य हैं। इनमें रामदेव धुरंधर, सूर्यदेव सिबोरत, महेश रामजीयावन तथा सुरेरश रामवर्ण के संस्मरण विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। मॉरिशस के हिंदी प्रकाशनों पर महत्वपूर्ण व जानकारीपरक परिशिष्ठ भी जानकारीपरक है। पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र का यह कहना बिलकुल सही है कि "आज की बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियों में भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है।" संपादक गंगाधर सिंह सुखलाल ने भी स्पष्ट किया है कि "विश्व हिंदी पत्रिका 2010 में शामिल किए गए लेख हिंदी की समृद्धि का अच्छा प्रमाण है।" पत्रिका संग्रह योग्य व उपयोगी है।

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