पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: दिसम्बर 2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 56, रेखा चित्र/छायांकन: सुरजीत, मूल्य: 5रू.(वार्षिक 60), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. उपलब्ध नहीं, सम्पर्क: हिमाचल प्रदेश प्रिटिंग पे्रस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला 5(हिमाचल प्रदेश)
हिमाचल प्रदेश की यह पत्रिका निरंतर उत्कृष्ट व जनोपयोगी साहित्य का प्रकाशन कर रही है। समीक्षित अंक में यशपाल की कहानियां वस्तु एवं शिल्प(हेमराम कौशिक), प्रयोगवाद के पुरोधाः अज्ञेय(राजेन्द्र परदेसी), मानव कल्याण ही अज्ञेय की कविताओं का लक्ष्य है(डाॅ. रामनारायण सिंह मधुर), भावी पीढ़ी और मीडिया(उमा ठाकुर) तथा कबीर और हमारा समय(डाॅ जगन्नाथ मणि त्रिपाठी) उल्लेखनीय आलेख हैं। कहानियों में नया कोट(डाॅ. मदन चंद्र भटट), नर से भारी नारी(विनोद राही) समाज के संबंध में एक नया दृष्टिकोण सामने लाती है। प्रताप सिंह सोढ़ी एवं पंकज शर्मा की लघुकथाएं अच्छी व समसामयिक हैं। पवन चैहान, वंदना राणा, कृष्णा ठाकुर एवं विक्रम की कविताएं प्रभावित करती है। संतोष उत्सुक का व्यंग्य तथा भीम सिंह नेगी का चिंतन इतिहास साक्षी है प्रभावित नहीं कर सके हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व समाचार अच्छे व जानकारी परक हैं।

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