पत्रिका: वाणी प्रकाशन समाचार, अंक: दिसम्बर 2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: अरूण माहेश्वरी, पृष्ठ: 30, मूल्य: 5रू.(वार्षिक 60), ई मेल: vaniprakashan@gmail.com , वेबसाईट: http://www.vaniprakashan.in/ , फोन/मो. 011.23273167, सम्पर्क: 21ए, दरियागंज, नयी दिल्ली 110002
वाणी प्रकाशन की नवीनतम जानकारी प्रदान करने वाला यह समाचार बुलेटिन साहित्य जगत को नए प्रकाशनों के संबंध में उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। समीक्षित अंक में चांद आसमान डाट काम(विमल कुमार), तीसरी ताली(प्रदीप सौरभ), ज़ख्म हमारे(मोहनदास नैमिशराय) उसी शहर में उसका घर(धु्रव शुक्ल), पहर दोपहर(असगर वजाहत), वह जो घाटी ने कहा(पुन्नी सिंह)एवं मुमताज महल(सुरेश कुमार वर्मा) जैसे उत्कृष्ट प्रकाशनों की जानकारी बहुुत ही संुदर ढंग से प्रकाशित की गई है। अज्ञेय साहित्य की विस्त्त जानकारी एवं आलोचना पुस्तक ‘उत्तर छायावाद काल, दिनकर और उर्वशी’(सं. गोपेश्वर सिंह) इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। भील इतिहास के रोमांचकारी एवं मार्मिक उपन्यास ‘मगरी मानगढ़’(राजेन्द्र मोहन भटनागर) की समीक्षा इस उपन्यास को शीघ्र प्राप्त कर पढ़ने की इच्छा जाग्रत करती है। राजस्थान के मेवाड़ इलाके में मोहन गिरि आदिवासियों के मसीहा रहे हैं। उनके साथ (लेखक के अनुसार) लगभग 1500 निहत्थे भील आदिवासियों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसाई थीं। उनमें से 379 आदिवासी मारे गए थे। कर्नल शटन के इस गोलीकांड़ की लोमहर्षक कहानी पाठक की आंखें नम कर देगीं। राघेय राघव के उपन्यास प्रतिदान व कल्पना की जानकारी अच्छी व प्रभावशाली है। अन्य पुस्तकों की जानकारी पाठकों का ज्ञानार्जन करती है।
सुन्दर समीक्षा.
ردحذفहिन्दी में प्रकाशित होने वाली तमाम पत्र पत्रिकाओं की जानकारी देने वाला यह अपने आप में अनूठा प्रयास हैा इसके लिए निश्चय ही शुक्ल जी बधाई के पात्र हैं;
ردحذفAbhar Akhilesh ji
ردحذفधन्यवाद इस जानकारी के लिये।
ردحذفإرسال تعليق