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सामाजिक साहित्यिक, जनचेतना के लिए प्रतिबद्ध पत्रिका अरावली उद्घोष के समीक्षित अंक में प्रकाशित रचनाओं का मूल स्वर आदिवासियों के अस्तित्व की चिंता है। अंक में आदिवासियों पर आए अस्तित्व के संकट को लेकर परिचर्चा आयोजित की गई है। इस परिचर्चा से आदिवासियांे पुनर्वास व कल्याण के लिए सुझाव व उनसे जुड़ी समस्याओं पर विचार आए हैं। रामजी ध्रुव, साहू रामलाल गुप्ता, जे. आर. आर्मी, सुरेन्द्र नायक, चन्दालाल चकवाला, जवाहर सिंह मार्को, अमित पोया के साथ साथ भागीरथ जी के विचार उपयोगी व अमल में लाने योग्य हैं। कहानियों में थप्पड़(डाॅ. परदेशी राम वर्मा), त्रासदी....माय फुट(रमेश उपाध्याय) तथा वरेन्डा(केदार प्रसाद मीणा) अच्छी व समाज से जुड़ी हुई रचनाएं हैं। विशेष रूप से त्रासदी......माय फुट का कथानक भोपाल गैस त्रासदी की फिर से याद दिला देता है। कहानी पढ़कर गैस से पीड़ित लोगांे के दुख दर्द व उनकी पीड़ा से आम पाठक अपने आप को जुड़ा पाता है। गिरजा शंकर मोदी, अशोक सिंह, राजकुमार कुम्भज व हेमराज मीणा ‘दिवाकर’ की कविताएं अच्छी व आम जन को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। एन.जी. ओ. साम्राज्यवाद के चाकर(जेम्स पेत्रास तथा हेनरी वेल्तमेयर), अम्बेड़कर का सपना अभी अधूरा है(वेद व्यास), हम भ्रष्टाचार और शोषण को कैस खत्म कर सकते हैं(वी.टी. राजशेखर), आदिवासी नहीं जलाते रावण को(के.आर. शाह) तथा आदिवासी वीर छीतू किराड़ राजा(विद्या कालूसिंग) के लेख पठनीय व सहेजकर रखने योग्य हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं तथा समाचार आदि भी प्रभावित करते हैं।
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