पत्रिका : पाण्डुलिपि, अंक : जुलाईसितम्बर 2010(प्रवेशांक), स्वरूप : त्रैमासिक, प्रमुख संपादक : अशोक सिंघई, कार्यकारी संपादकः जयप्रकाश मानस, पृष्ठ : 380, मूल्य : 25रू.(.वार्षिक 100रू.), ई मेल : pandulipatrika@gmail.com , वेबसाईट/ब्लॉग : http://www.pramodvarma.com/ , फोन/मो. 094241.82664, सम्पर्क : सिंघई विला, 7 बी, सड़क 20, सेक्टर 5, भिलाई नगर, 490006(छतीसग़)
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर ( CG) का प्रकाशन
पाण्डुलिपि पत्रिका के प्रवेशांक को देखकर यह कहा जा सकता है कि शीघ्र ही यह पत्रिका देश की प्रथम पंक्ति की साहित्यिक पत्रिका होगी। यद्यपि प्रवेशांक में वे सभी कमियां है जो किसी भी पत्रिका के प्रवेशांक में होती हैं। लेकिन इससे पत्रिका के स्तर में कोई कमी नहीं आई है। रचनात्मक रूप से पत्रिका समृद्ध है व उसकी सामग्री उपयोगी तो है ही पठनीय व संग्रह योग्य भी है। अंक में धरोहर के अंतर्गत ख्यात आलोचक लेखक प्रमोद वर्मा का आलेख हम कूं मिल्या जियावनहारा में ख्यात व्यंग्यकार परसाई जी पर संस्मरण में वर्मा जी ने उस दौर की वस्तुस्थितियों पर प्रकाश डाला है। विरासत के अंतर्गत पदुम लाल पुन्नालाल बख्शी, हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलेख पुनः पॄकर साहित्य का नवीन पाठक हिंदी के प्रति अपनी सही राय बनाने में सफल रहा है। रवीन्द्र नाथ टैगोर, अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, प्रमोद वर्मा एवं हरि ठाकुर की कविताएं साहित्य के अतीत में ले जाती हैं। सुदर्शन की कहानी हार की जीत, फैज अहमद फैज की ग़ज़लें, हरिशंकर परसाई तथा लतीफ घोघी का व्यंग्य पत्रिका के भविष्य की योजनाओं पर संकेत करता है। नोम चामस्की का आलेख गैर टिकाऊ अविकास तथा खगेन्द्र ठाकुर का लेख पहला गिरमिटिया : जीवन की कला संग्रह योग्य हैं। पाब्लो नेरूदा, हेराल्ड प्रिंटर, स्तेफान स्पेण्डर, ओल्गा खर्लामिनोवा तथा रानी जयचंद्र की कविताओं का अनुवाद भी कुछ कमियों के साथ स्वीकार किया जा सकता है। अशोक वर्मा, रंजना जायसवाल, राजकुमार कुम्भज, लाला जगदपुरी, कुमार नयन, अनामिका, श्याम अविनाश, मोहन राणा, नवल किशोर शर्मा, भास्कर चौधुरी, प्रेमशंकर रघुवंशी, विनोद शर्मा, केशव तिवारी, निर्मल आनंद, विश्वजीत सेन, सुनील श्रीवास्तव, महेश चंद्र पुनेठा, युगल गजेन्द्र, त्रिलोक महावर, केशव शरण, अशोक सिंह, जयश्री राय, खनीजा खानम, रमेश सिन्हा, सरजू प्रकाश राठौर, सौमित्र महापात्र, वीरेन्द्र सारंग, वसंत त्रिपाठी, जनार्दन मिश्र, सुनीता जैन, रमेश प्रजापति एवं संजय अलंग की कविताएं पत्रिका का स्वरूप विस्तृत बनाती हैं तथा इस बात के लिये आस्वस्त करती हैं कि पाण्डुलिपि भविष्य में काव्य विधा पर विशेष सामग्री प्रकाशित करेगी। डॉ. ओम प्रभाकर, ज्ञानप्रकाश विवेक, इब्राहम खान गौरी अश्क, डॉ. श्याम सखा श्याम की ग़ज़लें अच्छी व पठनीय हैं। ख्यात कवि अशोक वाजपेयी, गीतकाल निदा फाजली, प्रसिद्ध कवि चंद्रकांत देवताले, ह्षिकेश सुलभ से साक्षात्कार स्तरीय हैं। प्रकाश कांत, राजेश झरपुरे, नरेन्द्र पुण्डरीक, संतोष श्रीवास्तव, संदीप कुमार, विनोद साब, विक्रम शाह ठाकुर, राधा कृष्ण सहाय, वासुदेव, सीतेश कुमार द्विवेदी, भगवती प्रसाद द्विवेदी, शैलेन्द्र तिवारी एवं आशा पाण्डेय की कहानियां अच्छी व गहन अध्ययन की मांग करती है। चीड़ों पर बिखरी हुई निर्मल चांदनी(अखिलेश शुक्ल) तथा कारमेल बीच यू.एस. ए.(रमणिका गुप्ता) डायरियां भी इस विधा में अपनी बातें बहुत अच्छी तरह से कह सकीं हैं। श्रीलाल शुक्ल, शंकर पुणतांबेकर, प्रेम जनमेजय के व्यंग्य तथा विनोद शंकर शुक्ल का व्यंग्य आलेख पॄने में रूचिकर हैं। डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारी का व्यंग्य आलोचना लेख व्यंग्य कविताओं के जीवन मूल्यों की फिर से व्याख्या सफलतापूर्वक कर सका है। डॉ. अनिल कुमार, कृष्ण कुमार यादव व दिनेश माली के विविध विषयों पर लेख प्रभावित करते हैं। अश्विनी कुमार पंकज की कहानी गाड़ी लोहारदगा मेल में उन्होंने इस विधा के साथ कुछ नवीन प्रयोग किए हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं तथा समीक्षाएं भी अपेक्षित स्तर की हैं। पत्रिका का यह प्रवेशांक है इसलिए इसमें जो भी कमियां हैं उम्मीद की जाना चाहिए कि अगले अंकों में वे दूर हो जाएंगी। केवल यह कहकर की पाण्डुलिपि में ेर सारी कमियां हैं इसके महत्व व साहित्य मे सार्थकता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। पाठकों को पत्रिका के आगामी अच्छे अंकों की प्रतीक्षा अवश्य रहेगी।
पाण्डुलिपि पत्रिका के प्रवेशांक को देखकर यह कहा जा सकता है कि शीघ्र ही यह पत्रिका देश की प्रथम पंक्ति की साहित्यिक पत्रिका होगी। यद्यपि प्रवेशांक में वे सभी कमियां है जो किसी भी पत्रिका के प्रवेशांक में होती हैं। लेकिन इससे पत्रिका के स्तर में कोई कमी नहीं आई है। रचनात्मक रूप से पत्रिका समृद्ध है व उसकी सामग्री उपयोगी तो है ही पठनीय व संग्रह योग्य भी है। अंक में धरोहर के अंतर्गत ख्यात आलोचक लेखक प्रमोद वर्मा का आलेख हम कूं मिल्या जियावनहारा में ख्यात व्यंग्यकार परसाई जी पर संस्मरण में वर्मा जी ने उस दौर की वस्तुस्थितियों पर प्रकाश डाला है। विरासत के अंतर्गत पदुम लाल पुन्नालाल बख्शी, हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलेख पुनः पॄकर साहित्य का नवीन पाठक हिंदी के प्रति अपनी सही राय बनाने में सफल रहा है। रवीन्द्र नाथ टैगोर, अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, प्रमोद वर्मा एवं हरि ठाकुर की कविताएं साहित्य के अतीत में ले जाती हैं। सुदर्शन की कहानी हार की जीत, फैज अहमद फैज की ग़ज़लें, हरिशंकर परसाई तथा लतीफ घोघी का व्यंग्य पत्रिका के भविष्य की योजनाओं पर संकेत करता है। नोम चामस्की का आलेख गैर टिकाऊ अविकास तथा खगेन्द्र ठाकुर का लेख पहला गिरमिटिया : जीवन की कला संग्रह योग्य हैं। पाब्लो नेरूदा, हेराल्ड प्रिंटर, स्तेफान स्पेण्डर, ओल्गा खर्लामिनोवा तथा रानी जयचंद्र की कविताओं का अनुवाद भी कुछ कमियों के साथ स्वीकार किया जा सकता है। अशोक वर्मा, रंजना जायसवाल, राजकुमार कुम्भज, लाला जगदपुरी, कुमार नयन, अनामिका, श्याम अविनाश, मोहन राणा, नवल किशोर शर्मा, भास्कर चौधुरी, प्रेमशंकर रघुवंशी, विनोद शर्मा, केशव तिवारी, निर्मल आनंद, विश्वजीत सेन, सुनील श्रीवास्तव, महेश चंद्र पुनेठा, युगल गजेन्द्र, त्रिलोक महावर, केशव शरण, अशोक सिंह, जयश्री राय, खनीजा खानम, रमेश सिन्हा, सरजू प्रकाश राठौर, सौमित्र महापात्र, वीरेन्द्र सारंग, वसंत त्रिपाठी, जनार्दन मिश्र, सुनीता जैन, रमेश प्रजापति एवं संजय अलंग की कविताएं पत्रिका का स्वरूप विस्तृत बनाती हैं तथा इस बात के लिये आस्वस्त करती हैं कि पाण्डुलिपि भविष्य में काव्य विधा पर विशेष सामग्री प्रकाशित करेगी। डॉ. ओम प्रभाकर, ज्ञानप्रकाश विवेक, इब्राहम खान गौरी अश्क, डॉ. श्याम सखा श्याम की ग़ज़लें अच्छी व पठनीय हैं। ख्यात कवि अशोक वाजपेयी, गीतकाल निदा फाजली, प्रसिद्ध कवि चंद्रकांत देवताले, ह्षिकेश सुलभ से साक्षात्कार स्तरीय हैं। प्रकाश कांत, राजेश झरपुरे, नरेन्द्र पुण्डरीक, संतोष श्रीवास्तव, संदीप कुमार, विनोद साब, विक्रम शाह ठाकुर, राधा कृष्ण सहाय, वासुदेव, सीतेश कुमार द्विवेदी, भगवती प्रसाद द्विवेदी, शैलेन्द्र तिवारी एवं आशा पाण्डेय की कहानियां अच्छी व गहन अध्ययन की मांग करती है। चीड़ों पर बिखरी हुई निर्मल चांदनी(अखिलेश शुक्ल) तथा कारमेल बीच यू.एस. ए.(रमणिका गुप्ता) डायरियां भी इस विधा में अपनी बातें बहुत अच्छी तरह से कह सकीं हैं। श्रीलाल शुक्ल, शंकर पुणतांबेकर, प्रेम जनमेजय के व्यंग्य तथा विनोद शंकर शुक्ल का व्यंग्य आलेख पॄने में रूचिकर हैं। डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारी का व्यंग्य आलोचना लेख व्यंग्य कविताओं के जीवन मूल्यों की फिर से व्याख्या सफलतापूर्वक कर सका है। डॉ. अनिल कुमार, कृष्ण कुमार यादव व दिनेश माली के विविध विषयों पर लेख प्रभावित करते हैं। अश्विनी कुमार पंकज की कहानी गाड़ी लोहारदगा मेल में उन्होंने इस विधा के साथ कुछ नवीन प्रयोग किए हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं तथा समीक्षाएं भी अपेक्षित स्तर की हैं। पत्रिका का यह प्रवेशांक है इसलिए इसमें जो भी कमियां हैं उम्मीद की जाना चाहिए कि अगले अंकों में वे दूर हो जाएंगी। केवल यह कहकर की पाण्डुलिपि में ेर सारी कमियां हैं इसके महत्व व साहित्य मे सार्थकता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। पाठकों को पत्रिका के आगामी अच्छे अंकों की प्रतीक्षा अवश्य रहेगी।
बहुत सुंदर जानकारी जी धन्यवाद
ردحذفइस पत्रिका के प्रकाशन के लिए बधाई. अंक पढना चाहूँगा.
ردحذفपाण्डुलिपि पत्रिका के प्रवेशांक की बहुत अच्छी समीक्षा पेश की गई है...
ردحذفअंक हासिक करने का प्रयास है.
please correct the webaddress it is pramodverma.com thanks.
ردحذفBHAI AKHILESH JI, NAMASKAR. PATRIKAON KI SAMIKSHA KARANE MAI KAFI SHRAM KAR RAHE HAI.SADHUBAD.
ردحذفDR.DINESH PATHAK SHASHI.28, SARANG VIHAR, MATHURA-6 MBL-09412727361
إرسال تعليق