पत्रिका: वाङ्मय, अंक: अगस्त 2010, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: डाॅ. एम. फ़ीरोज़ अहमद, पृष्ठ: 72 , मूल्य:40रू.(.वार्षिक 150रू.), ई मेल: vagmaya2007@yahoo.co.in , वेबसाईट ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 0941227331, सम्पर्क: बी-4, लिबर्टी होम्स, अब्दुल्लाह काॅलेज रोड़, अलीगढ़ 202002 उ.प्र.
शोध छात्रों एवं साहित्य के गंभीर पाठकों के लिए उपयोगी इस पत्रिका मंे गंभीर व ज्ञानवर्धक आलेखों का प्रकाशन किया गया है। इनमें प्रमुख हैं - देह और देश के दोराहे पर अज़ीजुन(डाॅ. परमेश्वरी शर्मा, राजिन्दर कौर), नगाड़े की तरह बजते शब्द(शांति नायर), रामचरित मानस की काव्य भाषा में रस का स्वरूप(वंदना शर्मा), साहित्य सम्राटःमंुशी प्रेमचंद्र(डाॅ. मजीद शेख), मीराकंात एक संवेदनशील रचनाकार(अंबुजा एन. मलखेडकर), काला चांदःएक विवेचन(मो. आसिफ खान, भानू चैहान) के आलेखों में हिंदी साहित्य की विचारधाराओं व चिंतन को संक्षिप्त किंतु सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया गया है। समसकालीन परिपे्रक्ष्य में हिंदी की दशा एवं दिशा(डाॅ. रिपुदमन सिंह यादव), डाॅ. राही मासूम रज़ा के कथा साहित्य में विवाह के प्रति बदलते दृष्टिकोण(सलीम आय मुजावर) एवं मन्नू भण्डारी की कहानियों में आधुनिक मूल्यबोध(डाॅ. एन.टी. गामीत) विवरण तथा विश्लेषण का अच्छा समन्वय दिखाई देता है। हालांकि यह आलेख विशुद्ध रूप से शोध आलेख नहीं हैं किंतु शोध छात्रों के लिए संदर्भ का कार्य अवश्य ही करेंगे। संजीव ठाकुर, अलकबीर, मधू अग्रवाल एवं विजय रंजन की कविताएं विशेष रूप से प्रभावित करती है। अशफाक कादरी एवं नदीम अहमद नदीम की लघुकथाएं सामान्य सी लगीं। जय श्री राय की कहानी ‘उसके हिस्से का सुख’ एक अच्छी व याद रखने योग्य कहानी है। आजकल जयश्री राय लगातार अच्छी कहानियां लिख रहीं हैं। मूलचंद सोनकर के लेख में तल्खी अधिक व समन्वय कम दिखाई देता है।
वाङ्मय, अंक: अगस्त २०१० का आवरण सच में सुन्दर है, इस पत्रिका की जानकारी के लिया आभार
ردحذفregards
उचित सम्पर्क नंबर उपलब्ध कराने का कष्ट करें।
ردحذفमो0 8299527031
जो नंबर दिया गया है उस नंबर से संपर्क नही हो पाता।
ردحذفإرسال تعليق