पत्रिका: अनुसंधान, अंक: जुलाई-सितम्बर 2010, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादकः शगुफ़्ता नियाज़, पृष्ठ: 80, मूल्य:40 रू.(.वार्षिक 150रू.), ई मेल: shaguftaniyaaz@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 09412277331, सम्पर्क: बी-4, लिबर्टी होम्स, अब्दुल्लाह कालेज रोड़, अलीगढ़ 202002 उ.प्र.
अनुसंधान हिंदी के साथ साथ भारतीय भाषा व साहित्य के लिए गौरव है। पत्रिका के स्तरीय शोध आलेख शोधार्थियों एवं आम पाठकों की जिज्ञासा समान रूप से शांत करते हैं। अंक में प्रकाशित आलेखों में मिस्टर जिन्ना: इतिहास और पुनर्सृजन(डाॅ. परमेश्वरी शर्मा, राजिन्दर कौर), ब्रज का ऐतिहासिक एवं सांस्कृति स्वरूप(डाॅ. शिवचंद प्रसाद), सूरदास के सूरसागर मंें कृष्ण लीला(पूजा) एवं डाॅ. नामवर सिंह की माक्र्सवादी आलोचना(हरमन सिंह) प्रत्येक दृष्टि से विचार योग्य आलेख हैं। समकालीन कहानी का पारिस्थिक पाठ(डाॅ. शांति नायर), जयशंकर प्रसाद के ऐतिहासिक नाटक: राष्ट्र के संदर्भ में नारी(बबिता के), महिला नाटक साहित्य: एक विकास यात्रा(अंबुजा एन. मलखेड़कर) तथा हरिवंशराय बच्चन: कवि के रूप में(गीताबहन के. झणकाट) अच्छे जानकारीपरक आलेखों की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। परंपरा और आधुनिकता के बीच हिचकोले लेती नारी: अमृता प्रीतम के उपन्यासों के संदर्भ मंे(गिरीश ए. सोलंकी), आत्म-साक्षी: लाभ और लोभ से साक्षात्(मृत्यंुजय पाण्डेय), महाभोज उपन्यास स्वातंत्रयोत्तर राजनीति का प्रामाणिक दस्तावेज(डाॅ. एन.टी. गामीत) तथा उद्योग और व्यवसाय: ऐतिहासिक पर्यवेक्षण(गीता) अपने अपने विषयों का अच्छा विश्लेषण कर सके हैं। पत्रिका का संपादकीय भारतीय नारी की दशा एवं दिशा पर काफी कुछ कहकर गंभीर बहस की मांग करता है। यह संग्रह योग्य अंक प्रत्येक हिंदी प्रेमी की डेस्क पर होना चाहिए।
अनुसंधान हिंदी के साथ साथ भारतीय भाषा व साहित्य के लिए गौरव है। पत्रिका के स्तरीय शोध आलेख शोधार्थियों एवं आम पाठकों की जिज्ञासा समान रूप से शांत करते हैं। अंक में प्रकाशित आलेखों में मिस्टर जिन्ना: इतिहास और पुनर्सृजन(डाॅ. परमेश्वरी शर्मा, राजिन्दर कौर), ब्रज का ऐतिहासिक एवं सांस्कृति स्वरूप(डाॅ. शिवचंद प्रसाद), सूरदास के सूरसागर मंें कृष्ण लीला(पूजा) एवं डाॅ. नामवर सिंह की माक्र्सवादी आलोचना(हरमन सिंह) प्रत्येक दृष्टि से विचार योग्य आलेख हैं। समकालीन कहानी का पारिस्थिक पाठ(डाॅ. शांति नायर), जयशंकर प्रसाद के ऐतिहासिक नाटक: राष्ट्र के संदर्भ में नारी(बबिता के), महिला नाटक साहित्य: एक विकास यात्रा(अंबुजा एन. मलखेड़कर) तथा हरिवंशराय बच्चन: कवि के रूप में(गीताबहन के. झणकाट) अच्छे जानकारीपरक आलेखों की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। परंपरा और आधुनिकता के बीच हिचकोले लेती नारी: अमृता प्रीतम के उपन्यासों के संदर्भ मंे(गिरीश ए. सोलंकी), आत्म-साक्षी: लाभ और लोभ से साक्षात्(मृत्यंुजय पाण्डेय), महाभोज उपन्यास स्वातंत्रयोत्तर राजनीति का प्रामाणिक दस्तावेज(डाॅ. एन.टी. गामीत) तथा उद्योग और व्यवसाय: ऐतिहासिक पर्यवेक्षण(गीता) अपने अपने विषयों का अच्छा विश्लेषण कर सके हैं। पत्रिका का संपादकीय भारतीय नारी की दशा एवं दिशा पर काफी कुछ कहकर गंभीर बहस की मांग करता है। यह संग्रह योग्य अंक प्रत्येक हिंदी प्रेमी की डेस्क पर होना चाहिए।
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