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विश्व भर में अपनी विविधता पूर्ण साहित्यिक सामग्री एवं कलेवर के कारण विख्यात हिंदी चेतना का समीक्षित अंक पठनीय सामग्री से भरपूर है। पत्रिका में प्रकाशित रचनाएं हिंदी साहित्य जगत के विश्व समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। अंक में प्रकाशित कहानियों में - उसके हिस्से का पुरूष(पुष्पा सक्सेना), खो जाते हैं घर(सूरज प्रकाश), खुल जा सिमसिम(सुषम वेदी) एवं तमाचे(प्रतिभा सक्सेना) है। अंक की कहानियां आम लोगों की जिंदगी के आसपास से गुजरती हुई उन्हें विकास की धारा में लाने का प्रयास करती दिखाई देती हंै। पत्रिका के व्यंग्य अपनी पैनी धार के साथ साथ पाठक के लिए चिंतन की पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं। अथः अति उत्तर(पे्रम जनमेजय), अगले जन्म मोहे...(समीर लाल ‘समीर’) एवं प्रभु आप अपना नाम...(पाराशर गौड) इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह विधा समाज में आमूल चूल परिवर्तन लाने का प्रमुख हथियार है। कविताओं में रविकांत पाण्डेय, रचना श्रीवास्तव, सरस्वती माथुर, राजीव रंजन, योगेन्द्र शर्मा, नरेन्द्र टण्डन, ब्रजेश धारीवाल, बी.एल. श्रीवास्तव की कविताएं मानव मन को उझलनों से निकाल कर उन्नत भविष्य की ओर ले जाने का आग्रह करती दिखाई देती हैं। चांद शुक्ला की ग़ज़ल तथा सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, आचार्य संजीव सलिल, शशि पाधा एवं डाॅ. अफरोज ताज की रचनाएं उल्लेखनीय हैं। इंदिरा धीर बडेरा का प्रज्ञा परिशोधन अच्छी व शिक्षाप्रद जानकारी देता है जो किसी भी मनुष्य के चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक है। साहित्यिक समाचार तथा अन्य रचनाएं पत्रिका को सर्वस्वीकार्य स्वरूप प्रदान करती हैं। प्रधान संपादक श्याम त्रिपाठी जी का संपादकीय हिंदी भाषा एवं साहित्य के लिए चिंतित दिखाई देता है तथा उसके विकास के लिए निरंतर कुछ न कुछ करने के लिए तत्पर हंै।
फ़िर से सुंदर जानकारी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंwaah !
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