पत्रिका: संस्कृति, अंक: 17, स्वरूप: अर्द्धवार्षिक, संपादक: भारतेश कुमार मिश्र, पृष्ठ: 96, मूल्य:निःशुल्क. (सीमित वितरण के लिए), ई मेल: editorsanskriti@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: www.indiaculture.nic.in , फोन/मो. 011.23383032, सम्पर्क: 209, डी. विंग, शास्त्री भवन, डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद मार्ग, नई दिल्ली 110.001
सांस्कृतिक विचारों की प्रतिनिधि पत्रिका संस्कृति विविधतापूर्ण आलेखों से युक्त है। पत्रिका मंे प्रकाशित रचनाएं देश ही नहीं विदेश में भी भारतीय कला संस्कृति व साहित्य का प्रचार प्रसार कर योगदान दे रही है। पत्रिका में प्रकाशित आलेखों में - दक्षखेड़ाः पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष(ओम प्रकाश कादयान), प्राचीन भारत में काष्ठ कलाकृतियां(डाॅ. सर्जुन प्रसाद), बुद्ध प्रतिमा उदभव और विकास(डाॅ. ब्रजेश कुमार), मुरिया जनजाति का घोटुल(डाॅ. रामसंुदर श्रीवास्तव), लोक कथाओं की अंतप्रकृति(सुधीर निगम), पंडवानी की पताका फहराती तीजन बाई(महाबीर अग्रवाल), देव गढ़ की गुप्तकालीन कला(राजेन्द्र कुमार सिंह) शामिल है। पत्रिका का स्वर कला संस्कृति के संरक्षण को गति प्रदान करता है। उसे संपादक मंड़ल ने अपनी कलात्मकता से और भी अधिक निखारा है। अन्य उपयोगी रचनाओं में सुल्तानगंज की विलक्षण बौद्ध प्रतिमाएं(डाॅ. ओमप्रकाश पाण्डेय), पुरा संपदा का आगार मंदसौर(डाॅ. तारादत्त निर्विरोध), डीपाडीह के ऐतिहासिक संदर्भ(वेदप्रकाश अग्रवाल), असम में देवी पूजा की परंपरा(नवकांत शर्मा), भारत में देवदासी प्रथा(डाॅ. गरिमा श्रीवास्तव), मुगलकाल में भारतीय चित्रकला(रामकृष्ण) व विष्णुपुर की मृण्मयी धरोहर(अखिलेश झा) को रखा जा सकता है। पत्रिका वर्णन के साथ साथ खोजपरक विश्लेषण करते हुए रचनाओें को संुदर ढंग से प्रस्तुत करती है। अनामिका पाठक, सीताराम गुप्ता, डाॅ. रीतारानी पालीवाल, डाॅ. महीप सिंह, डाॅ. अवधेश मिश्र एवं डाॅ. सर्वेश पाण्डेय के आलेखों में इसे महसूस किया जा सकता है। पत्रिका का कलेवर व प्रस्तुतिकरण आकर्षक व नयानाभिराम है। यह सच्चे अर्थो में भारतीय कला जगत को समूचे विश्व के सामने भारतीय संस्कृति व कला का दर्शन कराती है।
jagdish tapish [poet writer]ise traymasik hona chahiye bahut achchi bat hai saskrati sahiya aur kala ka sangam ek hi isthan par badhai
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुक्ला जी, मुझे इस अंक की प्रतीक्षा तब से थी जब से इस अंक में छत्तीसगढ़ के विषयों को समाहित किये जाने का निर्णय लिया गया था, सापेक्ष के संपादक आदरणीय डॉ.महावीर अग्रवाल जी को पंडवानी संबंधी लेख संस्कृति के लिए लिखते हुए देख चुका था, अब इसे आनलाईन पढ़ता हूं.
जवाब देंहटाएंसंस्कृति में प्रकाशित सामग्री अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंडॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
विभागाध्यक्ष हिन्दी
चोइथराम कालेज आफ प्रोफेशनल स्टडीज इंदौर पिन 452002 [भारत]
दूरध्वनी ०९४२४८८५१८९
पत्रिका संस्कृति विविधतापूर्ण आलेखों से युक्त है। यह सच्चे अर्थो में भारतीय कला जगत को समूचे विश्व के सामने भारतीय संस्कृति व कला का दर्शन कराती है।
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