
साहित्य की प्रगति के लिए प्रतिबद्ध पत्रिका का यह अंक समसामयिक रचनाओं से परिपूर्ण है। अंक में भारत यायावर, के.एम. चैटलिया, डाॅ. जर्नादन यादव, डाॅ. संजीव कुमार, कन्हैया सिंह सदब, सीमा दुबे एवं विनोद कुमार राज के आलेख इसे एक प्रगतिशील पत्रिका का दर्जा प्रदान करते हैं। रामदरश मिश्र का उपन्यास अंश व फादर कामिल बुल्के का संस्मरण पढ़ने योग्य रचनाएं हैं। सीला मोदी, सुदामा सिंह व श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी के व्यंग्यों में नयापन है। कविताओं की बुनावट समयानुकूल है जो आज की जरूरतों पर खरी उतरती हैं। इनमें प्रतिभा प्रसाद, डाॅ. प्रभा दीक्षित, पूर्णिमा केडिया व जयंत कुमार थोरान प्रमुखह हैं। सुरेन्द्र दीप, अनिता रश्मि एवं मनीष कुमार सिंह की कहानियां पठनीय हैं व उनका कथ्य सार्थक है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व पत्र समाचार आदि भी इसे प्रगति के पथ पर ले जाने में सक्षम है।
पूरी टिप् पढने के बाद ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय संज्ञान ।
अखिलेश भाई मै आपके इस ब्लाग का फीड सब्सक्राईबर हूं मैंने पिछले दिनो यहां कमेंट करके आपको बतलाया था कि इस ब्लाग का फीड जो मुझे प्राप्त हो रहा है उसके फोंट का आकार बहुत ही छोटा है उसे सामान्य आंख से पढना संभव ही नहीं है ऐसे में हमें विवश होकर पोस्ट पढने के लिए आपके इस ब्लॉग में आना पडता है.
जवाब देंहटाएंयदि आप "समीक्षाएं आपके ईमेल पते पर प्राप्त करें....." जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपका दायित्व बनता है कि अपने पाठकों की बातों पर भी ध्यान दें.
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