पत्रिका: समय के साखी(कहानी विशेषांक), अंक: जनवरी-फरवरी10, स्वरूप: मासिक, संपादक: डाॅ. आरती, पृष्ठ: 208, मूल्य: 100रू.यह अंक(वार्षिकः 220रू.), ई मेल: samaysakhi@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: http://samaykesakhi.in/ , फोन/मोबाईल: 9713035330, सम्पर्क: बी-308, सोनिया गांधी काम्प्लेक्स, हजेला हाॅस्पिटल के पास, भोपाल म.प्र. 462003
पत्रिका समय के साखी का समीक्षित अंक कहानी विशेषांक है। पत्रिका में देश विदेश के लगभग हर परिवेश की कहानी को प्रकाशित करने का सफल प्रयास किया गया है। इस अंक में बाज़ावाद, भूमंडलीकरण, अर्थव्यवस्था, प्रजातंत्रिक मूल्य, विदेशी संस्कृति, समाज, प्रगति, मानव मूल्य व मर्यादाएं जैसे विषय कहानी के विषय बने हैं। इन कहानियांे मंे संवेदनात्मक अनुभव जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट करता है। प्रकाशित कहानियों में तबादला(सूर्यकांत नागर), सुखांत(डाॅ.अनिल सुदर्शन गौड़), एक भला मानस(मोहनदास नैमिशराय), हिमनद(मनीष सिंह), ज़िस्मफरोशी का अड्डा(कृष्ण कुमार राय), ग्राहक(पुन्नी सिंह), सुलगते सवाल(कमल कपूर), मृगतृष्णा(डाॅ. स्वाति तिवारी), संशयात्मा(कैलाश पचैरी), ममी(डाॅ. रंजन जैदी), और सजा भी कैसी(तरनजीत), रिश्तों का बंधन(डाॅ. शील कौशिक), गांधी या गोली(डाॅ. निहारिका रश्मि), माॅफी(अखिलेश शुक्ल), शहरो(नरेन्द्र कुमार गौड), तिनके(अंजु दुआ जैमिनी), सफेद लाल कमल के फूल(डाॅ. अहिल्या मिश्र), समाधान(रेणु व्यास), अस्तित्व(लता अग्रवाल), अम्मा की ममता(कमल किशोर दुबे), आॅनी(देवांशु पाल), टेलीफोन की घंटी(अमरजीत कौके), कौन सी जमीन अपनी(डाॅ. सुधा ओम ढीगरा), एक लड़ाई स्वयं से(रेणु राजवंशी गुप्ता) वर्तमान समय का प्रतिनिधित्व करती हैं। समकालीन कहानी पर डाॅ. पल्लव, राजेन्द्र परदेसी, डाॅ.प्रभा दीक्षित व डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव के आलेख पूरी सजगता से विश्लेषण करते हैं। कहानी उसके शिल्प व विशेषताओं पर परिचर्चा के अंतर्गत बहुपयोगी जानकारी का समावेश किया गया है। गाोविंद मिश्र, चित्रा मुदगल उर्मिला शिरीष एवं डाॅ वीरेन्द्र सक्सेना से बातचीत कहानी विधा के भविष्य व उसके बदलते स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। एक अच्छे उपयोगी व सार्थक अंक के लिए बधाई।
पत्रिका समय के साखी का समीक्षित अंक कहानी विशेषांक है। पत्रिका में देश विदेश के लगभग हर परिवेश की कहानी को प्रकाशित करने का सफल प्रयास किया गया है। इस अंक में बाज़ावाद, भूमंडलीकरण, अर्थव्यवस्था, प्रजातंत्रिक मूल्य, विदेशी संस्कृति, समाज, प्रगति, मानव मूल्य व मर्यादाएं जैसे विषय कहानी के विषय बने हैं। इन कहानियांे मंे संवेदनात्मक अनुभव जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट करता है। प्रकाशित कहानियों में तबादला(सूर्यकांत नागर), सुखांत(डाॅ.अनिल सुदर्शन गौड़), एक भला मानस(मोहनदास नैमिशराय), हिमनद(मनीष सिंह), ज़िस्मफरोशी का अड्डा(कृष्ण कुमार राय), ग्राहक(पुन्नी सिंह), सुलगते सवाल(कमल कपूर), मृगतृष्णा(डाॅ. स्वाति तिवारी), संशयात्मा(कैलाश पचैरी), ममी(डाॅ. रंजन जैदी), और सजा भी कैसी(तरनजीत), रिश्तों का बंधन(डाॅ. शील कौशिक), गांधी या गोली(डाॅ. निहारिका रश्मि), माॅफी(अखिलेश शुक्ल), शहरो(नरेन्द्र कुमार गौड), तिनके(अंजु दुआ जैमिनी), सफेद लाल कमल के फूल(डाॅ. अहिल्या मिश्र), समाधान(रेणु व्यास), अस्तित्व(लता अग्रवाल), अम्मा की ममता(कमल किशोर दुबे), आॅनी(देवांशु पाल), टेलीफोन की घंटी(अमरजीत कौके), कौन सी जमीन अपनी(डाॅ. सुधा ओम ढीगरा), एक लड़ाई स्वयं से(रेणु राजवंशी गुप्ता) वर्तमान समय का प्रतिनिधित्व करती हैं। समकालीन कहानी पर डाॅ. पल्लव, राजेन्द्र परदेसी, डाॅ.प्रभा दीक्षित व डाॅ. वीरेन्द्र सिंह यादव के आलेख पूरी सजगता से विश्लेषण करते हैं। कहानी उसके शिल्प व विशेषताओं पर परिचर्चा के अंतर्गत बहुपयोगी जानकारी का समावेश किया गया है। गाोविंद मिश्र, चित्रा मुदगल उर्मिला शिरीष एवं डाॅ वीरेन्द्र सक्सेना से बातचीत कहानी विधा के भविष्य व उसके बदलते स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। एक अच्छे उपयोगी व सार्थक अंक के लिए बधाई।
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