पत्रिका-वागर्थ, अंक-जनवरी.2010, स्वरूप-मासिक, संपादक-डाॅ. विजय बहादुर सिंह, पृष्ठ-146,मूल्य-20रू.(वार्षिक200रू.),फोनः(033)22817476, ईमेल bbparishad@yahoo.co.in , website http://www.bharatiyabhashaparishad.com/ सम्पर्क-भारतीय भाषा परिषद, 35 ए, शेक्सपियर शरणि कोलकाता 700017 भारतीय भाषा परिषद कोलकाता द्वारा प्रकाशित यह वागर्थ का नए वर्ष का प्रथम अंक है। ख्यात पत्रकार संपादक प्रभाष जोशी जी को याद करते हुए दयानंद पाण्डेय ने बहुत ही संतुलित तथा जानकारीप्रद संस्मरण लिखा है। जिसमें प्रभाष जी के व्यक्तित्व के पहलूओं पर विस्तार से उन्होंने प्रकाश डाला है। गिरीश मिश्र ने भूमण्डलीकरण के बीस वर्ष बीतने पर इस बात पर चिंता जाहिर की है कि हमारे देश में फिर भी सन्नाटा क्यों है? बांग्ला के प्रतिष्ठित कवि शंकर घोष पर चिंतन के अंतर्गत संजय भारती ने उनके सम्पूर्ण कृतित्व को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। ख्यात कवि विष्णु नागर तथा स्थापित कवयित्री नीलेश रघुवंशी की कविताएं के माध्यम से आम आदमी व उसकी घुटती पिसती जिंदगी को भीतर तक झांककर देखा जा सकता है। ख्यात आलोचक शंभुनाथ ने भारत के लोगों, उनके व्यव्हार व कार्यप्रणाली को आजादी के पहले तथा बाद के संदर्भ में विचार कर लिखा है। उर्मिला शिरीष, विनोद साव व आरती झा की कहानियां आज के बदलते समाज का आईना है। जिसमें उभरती तस्वीर भविष्य के लिए सचेत करती है। स्वयं प्रकाश जी की नोटबुक पढ़कर प्रत्येक पाठक किसी कहानीकार के अंतर्मन को समझ सकता है। कुसुम खेमानी, रेमिका थापा, अजय कुमार एवं विजय शर्मा के आलेख भारतीय साहित्य कला एवं संस्कृति को नए ढंग से देखते हैं। बीना क्षत्रिय, ओमप्रकाश यादव एवं अनिकेत शर्मा की कविताएं भी पत्रिका के स्तर के अनुरूप हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं सामग्री भी किसी अन्य साहित्यिक पत्रिका की अपेक्षा विविधतापूर्ण व जानकारीप्रद हैं।
बहुत सुंदर ओर उपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें