पत्रिका-कथाक्रम, अंक-अक्टूबर-दिसम्बर.09, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-शैलेन्द्र सागर, पृष्ठ-104, मूल्य-25रू. (वार्षिक 100रू.), सम्पर्क-3, ट्रांजिट होस्टल, वायरलेस चैराहे के पास, महानगर लखनऊ 226006 , फोनः 2336331, ईमेलः kathakrama@gmail.com
पत्रिका के इस अंक मंे समसामयिक कहानियों व अन्य रचनाओं का प्रकाशन किया गया है। सभी कहानियां अपने शिल्प के कारण पाठक का ध्यान आकर्षित करती है। इनमें प्रमुख है- रात(ए.असफल), रेत में आंसू(विद्याभूषण), डर है कहीं(विपिन बिहारी) एवं आश्रम(विवेक निझावन)। जय श्री राय का आलेख शनिचरी एवं रवीन्द्र वर्मा की रचना सामाजिक कीचड़ का दलदल पाठक को विचारने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लघुकथाओं में ज्ञानदेव मुकेश, राधेलाल नवचक्र, कृष्ण शर्मा एवं राज वाल्मीकि ने बहुत ही अच्छी तरह कथा की लघुता के साथ न्याय किया है। मधुरेश जी का कथा नेपथ्य एवं डाॅ. राजकुमार का ‘रफतार के मारे’ पत्रिका की विविधता दर्शाता है। कविताओं में ऋषिवंश, अनूप अशेष, कैलाश दहिया एवं सुशांत सुप्रिय का स्वर प्रगतिवादी है। ख्यात आलोचक श्री परमानंद श्रीवास्तव जी का आलेख ‘अंधेरे समय में साहित्य’ गंभीर पाठकों का अवश्य ही पसंद आएगा। अन्य रचनाएं, समीक्षाएं, व पत्र आदि भी स्तरीय व पत्रिका के पूर्ववर्ती अंकों की जानकारी प्रदान करते हैं।
पत्रिका के इस अंक मंे समसामयिक कहानियों व अन्य रचनाओं का प्रकाशन किया गया है। सभी कहानियां अपने शिल्प के कारण पाठक का ध्यान आकर्षित करती है। इनमें प्रमुख है- रात(ए.असफल), रेत में आंसू(विद्याभूषण), डर है कहीं(विपिन बिहारी) एवं आश्रम(विवेक निझावन)। जय श्री राय का आलेख शनिचरी एवं रवीन्द्र वर्मा की रचना सामाजिक कीचड़ का दलदल पाठक को विचारने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लघुकथाओं में ज्ञानदेव मुकेश, राधेलाल नवचक्र, कृष्ण शर्मा एवं राज वाल्मीकि ने बहुत ही अच्छी तरह कथा की लघुता के साथ न्याय किया है। मधुरेश जी का कथा नेपथ्य एवं डाॅ. राजकुमार का ‘रफतार के मारे’ पत्रिका की विविधता दर्शाता है। कविताओं में ऋषिवंश, अनूप अशेष, कैलाश दहिया एवं सुशांत सुप्रिय का स्वर प्रगतिवादी है। ख्यात आलोचक श्री परमानंद श्रीवास्तव जी का आलेख ‘अंधेरे समय में साहित्य’ गंभीर पाठकों का अवश्य ही पसंद आएगा। अन्य रचनाएं, समीक्षाएं, व पत्र आदि भी स्तरीय व पत्रिका के पूर्ववर्ती अंकों की जानकारी प्रदान करते हैं।
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