
कर्नाटक (भारत) पत्रिका का समीक्षित अंक पठ्नीय साहित्यिक सामग्री से भरपूर है। इसमें दक्षिण एवं उत्तर का सुंदर साहित्यिक समन्वय दिखाई देता है। प्रकाशित प्रमुख आलेखों में ‘हिंदी का बढ़ता प्रभाव एवं हमारा दायित्व’(आचार्य भगवत दुबे), ‘हिंदी भाषा का वर्तमान परिदृष्य’(डाॅ. अमर सिंह बधान), भारतीय भाषाओं के प्रति महात्मा गाॅधी के विचार(प्रभुलाल चैधरी) एवं ‘एस. भारती पत्रकार के रूप में’(डाॅ. एम. शेषन) प्रमुख हैं। हबीव तनवीर एवं श्रवण कुमार की कहानियों पर क्रमशः सत्यम बारेट एवं एस.पी. केवल के आलेख में नया पन दिखाई देता है। डाॅ. मेहता नगेन्द्र, टी. जी. प्रभाशंकर ‘पे्रमी’, डाॅ. मोहन आनंद एवं अशोक कुमार शेरी की पद्य रचनाएं समयानुकूल हैं। दक्षिण से हिंदी साहित्य पर प्रकाशित इस महत्वपूर्ण पत्रिका के भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
dakshin bhaart me yah prays sarahneey hai.
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