पत्रिका-प्रगतिशील वसुधा, अंक-समकालीन कहानी विशेषांक.2, स्वरूप-त्रैमासिक, प्र. संपादक-प्रो. कमला प्रसाद, अतिथि संपादक-जयनंदन, पृष्ठ-368, मूल्य-75रू.(वार्षिक 250रू.), संपर्क-एम.31, निराला नगर, दुष्यंत मार्ग, भदभदा रोड़, भोपाल 461.003(भारत)

ख्यात पत्रिका प्रगतिशील वसुधा का समीक्षित अंक समकालीन कहानी विशेषांक .2 है। अंक में सम्मलित कहानियों में दिलनवाज तुम बहुत अच्छी हो(प्रत्यक्षा), बोनसाई(योगिता यादव), अक्स बरक्स(यहया इब्राहिम), ठंडी गदूली(चरण सिंह पथिक), धूल(कविता), जींस(मनोज कुमार पाण्डेय), रौखड़(दिनेश कर्नाटक), खूंटा बदल गया(सच्चितानंद चतुर्वेदी), इंटरनेट सोनाली और सुब्रिमल मास्टर(प्रभात रंजन), लोकतंत्र के पहुरिये(पदमा शर्मा), बाकी बातें फिर कभी(राकेश बिहारी), सिनेमा के बहाने(वंदना राग), जाल(संजय कुमार), शेक्सपियर क्या तुम उससे मिलना चाहोगे(उमाशंकर चैधरी), बजंर जमीन(ज्योति ज्वाला), सब्जेक्ट फ्लेट नं. टू थर्टी वन(तरूण भटनागर),शामिल हैं। उपरोक्त कहानियों में विगत पन्द्रह वर्ष के सामाजिक आर्थिक राजनीतिक विषयों पर आधारित कथानकों ेको कहानी का रूप दिया गया है। प्रत्येक कहानी समाज के कमजोर वर्ग को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने का प्रयास करती हुई दिखाई देती है। प्रत्यक्षा की कहानी ‘दिलनवाज तुम बहुत अच्छी हो’ का शिल्प तथा वंदना राग की कहानी ‘सिनेमा के बहाने’ आज की सामाजिक आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करती दिखाई देती है। उमाशंकर चैधरी की कहानी ‘शेक्सपियर क्या तुम उससे मिलना चाहोगे’ बाल विधवा के जीवन तथा उसके संघर्ष से पाठक को बांधे रखती है। प्रभात रंजन ने इंटरनेट तथा आधुनिक कम्प्यूटर तकनीकि को गांव कस्बे के आम आदमी तथा उसके जीवन में आ रहे ऊतार चढ़ाव को बाखुबी प्रस्तुत किया है। वहीं तरूण भटनागर फ्लेट नं. टू थर्टी वन के माध्यम से महानगरों की भूल भुलैया तथा प्राइवेट डिटेक्टिव एजंेसी के माध्यम से मनुष्य के भटकाव व उसकी हड़बड़ाहट जासूसी नावेल पढ़ने का अहसास कराती है। राहुल सिंह, शंभू गुप्त, नीरज खरे, बजरंग बिहारी, राकेश कुमार सिंह, भरत प्रसाद, पल्लव, जीतेन्द्र गुप्त, अवधेश मिश्र तथा अरूण कुमार की वैचारिकी इमरजेंसी के बाद की कहानी तथा उसके विकास का लेखा जोखा प्रस्तुत करती है। वैचारिकी में नए रचनाकारों की रचनाओं को आज के सदर्भ में विश्लेषित किया गया है। विमर्श के अतंर्गत पूछे गए सवालों के जवाब भविष्य के लिए कहानी विधा की दिशा का निर्धारण करेंगे। जिन ख्यात साहित्यकारों ने विमर्श प्रस्तुत किया है उनमें राजेन्द्र यादव, असरगर वजाहत, रमेश उपाध्याय, मृदुला गर्ग, गिरिराज किशोर, रवीन्द्र कालिया, अखिलेश, संजीव, शशांक, अनामिका, लीलाधर मण्डलोई, शिवराम शामिल है। (समकालीन कहानी विशेषांक 02 की संक्षिप्त समीक्षा का भाग 01)

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