
दक्षिण में हिंदी के प्रचार प्रसार में लगी इस पत्रिका में डॉ. एन.एस. शर्मा, डॉ. अमर सिंह बधान, डॉ. एम शेषन गणेश गुप्त व मधु धवन के आलेखों को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। एस.के. जैन, सेवाराम गुप्ता, अंजु दुआ जैमिनी, ओम रायजादा की कविताएं उल्लेखनीय हैं। पत्रिका की विशेषता इसका हिंदी कन्नड़ के समानार्थी कहावतों पर डॉ. टी.जी. प्रभाकर प्रेमी का विवरण है। कैलाश चंद्र पंत द्वारा प्रेषित ॔हिंदी का वर्तमान भविष्य की दृष्टि’ संगोष्ठी विवरण परिषद के दृष्टिकोण की पुष्टि करता है।
हिंदी प्रचार की पत्रिका में यह बात होनी चाहिए की महानगरों के प्रख्यात बुक स्टाल्स
ردحذفमें हिंदी की पुस्तकें ना के बराबर हैं,यह दुःख और शर्म की बात है......
मेरी शुभकामनायें प्रगति के लिए....
बहुत ही अच्छी शुरुआत की है आपने. स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी. (gandhivichar.blogspot.com)
ردحذفSwagat hai aur behad achhee jaankaareeke liye dhanyawaad kehnaa chahungi !...mai apna kuchh lekhan publish karna chahtee hun...yaad rakhungi aapne jo link dee hai..!
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