
यह पत्रिका विगत 11 वर्ष से निरंतर प्रकाशित हो रही है। समीक्षित अंक में संकेतों के मौन(ए.एल.श्रीवास्तव), अनुभव के धागों से(जया चक्रवर्ती), प्रभावित करने वाली कहानियां है। व्यंग्य ‘नाम में क्या रखा है’(शामलाल कौशल) में और अधिक विस्तार एवं विश्लेषण की आवश्यकता थी। काव्य जगत के अंतर्गत शिल्पी(स्नेह), रमेश प्रसून(माहिया) तथा मोतीलाल मिश्र(धन्यवाद) की कविताएं इस अंक का आकर्षण है। गीतों में रीतेश अग्रवाल, निर्मल शुक्ल, कुमार शैलेन्द्र तथा तेजराम शर्मा अपनी-अपनी प्रस्तुति बहुत ही अच्छे ढंग से कर सके हैं। ग़ज़लांे में शैलजा नरहरि, अहमद बशी, डाॅ. कैलाश निगम तथा डाॅ. परशुराम शुक्ल ने अधिक प्रभावित किया। सबसे अच्छी ग़ज़़ल राम मेश्राम की ग़ज़ल है। उनकी ग़ज़ल मैं मैं मैं में क्या रखा है.... अच्छी समसामयिक रचना है। यह सादगीपूर्ण सुन्दर मुद्रण युक्त पत्रिका आपके शेल्फ में जगह पाने योग्य है।
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