पत्रिका: विभोम स्वर, अंक: जुलाई-सितम्बर 2021, स्वरूप: त्रैमासिक, प्रमुख संपादक: सुधा ओम ढींगरा, संपादक: पंकज सुबीर, आवरण/रेखाचित्र: श्री राजेन्द्र शर्मा, मार्टिन जॉन, पृष्ठ: 92, मूल्य: 50 रूपये, वार्षिक मूल्य: 1500 (पांच वर्ष) रूपयें, ई मेल : vibhomswar@gmail.com फोन/मोबाइल: 07562405545, वेबसाइट: www.vibhom.com/vibhomswar.html , सम्पर्क:पी.सी. लैब, शॉप नम्बर 2-7, सम्राट काम्पलेक्स, बेसमेट, बस स्टेण्ड के सामने, सीहोर म.प्र. 466001 भारत
विभोम स्वर ने हिंदी साहित्य जगत में कम समय में ख्याति अर्जित की है। यह पत्रिका कथाप्रधान त्रैमासिकी है। जिसे स्थापित रचनाकार श्रीमती सुधा ओम ढींगरा का कुशल संपादन प्राप्त है। ख्यात कथाकार पंकज सुबीर इस पत्रिका के संपादक है।
मित्रों आइये पत्रिका की रचनाओं पर चर्चा करते हैं -
संपादकीय
पत्रिका का संपादकीय श्रीमती सुधा ओम ढींगरा ने लिखा है। संपादकीय मे Covid 19 के बाद की स्थिति पर विचार किया गया है। लाकडाउन तथा उसके बाद गिरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है। सच तो यह है कि कोरोना महामारी ने इस सदी के मानव की जीवन शैली में अमूलचूल परिवर्तन किया है। सुधा जी ने लिखा है कि, कोरोना ने एक बात स्पष्ट कर दी है, विश्व के हर व्यक्ति को तरह तरह की चुनौतियों के लिये तैयार रहना पड़ेगा। सच है अन्यथा मानव सभ्यता खतरे में पड़ जायेगी।
विस्मृति के द्वार
इस उपशीर्षक के अंतर्गत पत्रिका में प्रसिद्ध लेखिका उषा प्रियम्वदा का संस्मरण है। शीर्षक है, शिब्बनलाल की बहन, रोती नहीं। शीर्षक आपको अजीब सा लगेगा। इसमें ऐसा क्या हैं लेकिन संस्मरण इस शीर्षक के आसपास घूमती हुई दिखाई पड़ती है। इसे कहानी की शैली में लिखा गया है। उन्होंने इस लम्बे तथा प्रभावित करने वाले संस्मरण को मार्मिक शैली में लिखा है। रचना में अनेक स्थान पर उषा जी की उपस्थिति दिखाई पड़ती है। उनकी कहानियों, उपन्यास का रसास्वादन कराता यह लेख सीखने के लिये बहुत कुछ छोड़ता है। अच्छा संस्मरण है। इस तरह की रचनाएं प्रायः कम ही पढ़ने में आती है।
कहानियां
पत्रिका में 8 पठनीय तथा प्रभावशाली कहानियां प्रकाशित की गई है। उनका विवरण निम्नानुसार है -
कहानी झूठा सेब को प्रज्ञा पाण्डेय ने लिखा है। कहानी आम जीवन की कथा है। मिसेज तनेजा के इर्दगिर्द कहानी रची गई है। कहानी अच्छी एवं पठनीय है।
विवेक निझावन द्वारा लिखी गई कहानी उसकी मौत बहुत कुछ नया है। कहानी का मुख्य पात्र इसी चिंता में डूबा रहता है कि उसे मौत की सजा मिलेगी। लेकिन वह जीना चाहता है, कुछ नया करना चाहता है। कहानी पढ़ें अच्छी लगेगी।
अंधेरों के बीच कहानी को अरूणा सब्बरवाल ने लिखा है। शहरी जीवन तथा उसकी आपाधापी के बीच से आगे बढ़ती यह कहानी अंधेरे को चीरती चलती है। उसके पश्चात पता चलता है कि सिमरन का जीवन कैसा गुजरेगा। अच्छी रचना है।
कादम्बरी मेहरा की लिखी कहानी कौन सुनें? में नया कुछ पढ़ने के लिये है। बड़े परिवार की बेटी सरोज के व्यक्तित्व को उभारती हुई यह कहानी नई संवाद शैली के कारण प्रभावित करती है। पढ़ने योग्य रचना है।
मिशन एन.पी.ए. को डॉ. रमेश यादव ने लिखा है। भारतीय बैंकिंग व्यवस्था से बाहर निकलते भविष्य का बदला स्वरूप इसमें है। अच्छी रचना है।
सेहरे का सगुन को कामेश्वर ने लिखा है। यह रचना मुस्लिम समाज में सम्पन्न होने वाले वैवाहिक गतिविधियों से आम जन को परिचित कराती है। कहानी में प्रयोग के साथ नयापन है।
सेवक नैयर की लिखी कहानी स्वाभिमान आजकल के गांवों को अर्द्धशहरों में बदलते परिवेश का कथानक है। लेखक ने विस्तार से बदलते ग्रामीण जीवन को पाठकों के सामने रखा है।
कहानी देवता को अरूण अर्णव खरे ने लिखा है। कहानी सामान्य भारतीय परिवार के युवक के भविष्य की चिंता दर्शाती है।
छाया श्रीवास्तव की लिखी कहानी सन्नाटा में पिता के जाने के बाद मॉ के प्रति बेटी के समर्पण दिखाई देता है।
पत्रिका में कहानीकारों की पहली कहानी भी प्रकाशित की जाती है। पत्रिका विभोम स्वर का यह प्रयास New कहानीकारों के लिये संजीवनी का कार्य करेगा। इस अंक में अदिति सिंह भदौरिया की लिखी पहली कहानी आखिरी खत प्रकाशित की गई है।
कथानुवाद
पत्रिका के इस अंक में मलयालम कहानी का अनुवाद प्रकाशित किया गया है। मलयालम कथाकार कमला दास की लिखी कहानी यर्थाथ के क्रूर चक्र का हिंदी अनुवाद अनामिका अनु ने किया है। कहानी पढ़ने पर कहीं से भी नहीं लगता है कि यह अनुवाद है। कहानी में सरसता है पाठकों को यह सरसता अच्छी लगेगी।
व्यंग्य
श्रीकांत आप्टे अच्छे व्यंग्यकार हैं। उनकी रचनाओं में पैनापन तथा नवीनता होती है। लोकापर्ण व्यंग्य में भी वही पैनापन है। लोकापर्ण करने वालों की वेशभूषा, कार्यशैली तथा क्रियाकर्म पर अच्छा व्यंग्य किया गया है। रचना में हास्य की अपेक्षा व्यंग्य अधिक है। आप हास्य पसंद करते हो तो यह आपके लिये नहीं है। लेकिन व्यंग्य के समझदार पाठकों के लिये यह अच्छी व्यंग्य रचना है।
संस्मरण
इस भाग में प्रभावशाली संस्मरण है। जिसका शीर्षक है हम भी कमीने तुम भी कमीने। इस संस्मरण की लेखिका हैं जेबा अल्वी। पाकिस्तान की लेखिका का संस्मरण प्रभावित करता है। वहां की जीवन शैली तथा शहरी वातावरण पर उन्होंने विस्तार से लिखा है।
एक अन्य संस्मरण वीरेन्द्र जैन द्वारा लिखा गया है। इसका शीर्षक है, रामरतन अवस्थी जी मेरे पहले साहित्यिक गुरूओं में से थे। लेखक ने अवस्थी जी के जीवन पर विश्लेषणात्मक ढंग से प्रकाश डाला है।
यादों के झरोखें से
इस भाग में गोविद सेन का लेख है, शीर्षक है रेडियो का इलाज करते पिता। रेडियो की यह कहानी पिछली सदी के प्रत्येक भारतीय परिवार की कहानी है। जिन्होंने अपने घर में रेडियो के दर्शन किये हैं। कैसे हम लोग रेडियो की साज संभाल करते थे, लेखक गोविद सेन रोचक ढंग से वर्णन करते हुये बताते हैं।
एक अन्य लेख शोभा रस्तोगी ने लिखा है। जिसका शीर्षक है जन्माष्टमी। प्रभावित करने वाला अच्छा लेख है।
लघुकथाएं
अंक में वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज की लघुकथा खेती प्रकाशित की गई है। अच्छी कहानी है।
लिप्यांतरण
इस उपशीर्षक के अंतर्गत पत्रिका में कुछ विशिष्ट रचनाएं प्रकाशित की जाती है। इस अंक मे लिप्यांतरण के अंतर्गत लेख गालिब एण्ड गोएते प्रकाशित किया गया है। यह मूल रचना हाजी लक लक द्वारा लिखी गई है। इसका लिप्यांतरण अख्तर अली ने किया है। पत्रिका के पाठकों को रचना अवश्य पसंद आयेगी।
कविताएं/गीत/ग़ज़लें
पत्रिका के इस अंक में कविताएं प्रकाशित की गई है। कथाप्रधान पत्रिका में इन्हेें पढ़कर तसल्ली होती है कि कविता के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है।
कविताओं का विवरण निम्नानुसार है -
2020, जरा मुझे भी बता दो खेमकरण सोमन
लाइमलाइट, सरोकारी लेखक, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एकता कानूनगों बक्षी
इन दिनों प्रकाश मनु
जहां आजादी के मायने हैं कुछ और, प्रतिभा चौहान
नदी अब ना वो नदी है, उसका हिस्सा
झूमता है जंगल तुम्हारी तानों पर,
हरे दिन काली रातें, कोई असंतोष नहीं,
दुनिया के सबसे खुबसूरत लोग,
अपरिचित कौन, मातृभूमि के नाम, चंचला प्रियदर्शनी
मां बस ऐसी ही होती है,
प्रेमचंद आज के परिपेक्ष्य में
मौन मत साधो हे साधो, दीपक शर्मा दीप
मैं चलूंगा अकेला ही चलूंगा,
ग़ज़लें दौलतराम प्रजापति
ग़ज़लें धर्मेन्द्र गुप्त
ग़ज़लें सुभाष पाठक जिया
अनुवादित कविता के अंतर्गत शंख घोष की कविताएं रोहित प्रसाद पथिक द्वारा अनुवाद किया गया।
आखिरी पन्ना
इस उपशीर्षक में पत्रिका के संपादक पंकज सुबीर के विचार हैं। संपादकीय में कोरोना काल में रचनाओं के प्रकाशन पर विचार व्यक्त किये गये हैं। आजकल रचनाओं के प्रकाशन से पहले सोशल मीडिया पर उसे पोस्ट करने की परंपरा सी चल पड़ी है। यह साहित्य के लिये अच्छा नहीं है। उसी तरह किसी एक रचना को प्रकाशन के लिये अनेक संस्थानों में भेजना भी ठीक नहीं है। अच्छा संपादकीय है, साहित्यप्रेमियों को कोरोनाकाल में धैर्य रखने की सलाह है।
पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ, पाठकों के पत्र तथा रचनाएं प्रभावित करती है।
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