पत्रिका: प्रोत्साहन,  अंक: जनवरी 2014, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: कमला जीवितराम सेतपाल, आवरण/रेखाचित्र: लवसुयश सेतपाल, पृष्ठ: 28, मूल्य: 15रू.(वार्षिक 150रू.), ई मेल: ,वेबसाईट: , फोन/मोबाईल: 022.26365138, सम्पर्क: ई-3/307, इन्लैक्स नगर, यारी रोड, वर्सोवा, अन्धेरी पश्चिम मुम्बई। 
ख्यात साहित्यकार स्व. श्री जीवितराम सेतपाल जी द्वारा स्थापित व संपादित इस पत्रिका के समीक्षित अंक में रूपा यादव, राधेलाल नवचक्र, जीवितराम सेतपाल, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, रामचरण यादव, मनोहर शर्मा की कहानियां व लघुकथाएं प्रमुखता से प्रकाशित की गई है। पत्रिका के इस अंक मंे सभी स्थायी स्तंभ, समाचार ,पत्र आदि को भी विशिष्ट ढंग से समाहित किया गया है। 

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  1. हार्दिक बधाई और मेरी स्वरचित रचना का अंश स्वागत में-
    दिया विश्वकर्मा ने सुंदर रथ
    चंदा ने अश्व दिये अमृतमय
    सुदृढ़ धनुष दिया अग्नि ने
    सूर्य ने वाण दिये तेजोमय
    शत्रु को करारा दे जो झटका
    कवि हूँ मैं सरयू तट का
    चक्र सुदर्शन दिया विष्णु ने
    लक्ष्मी दी संपत्ति अपार
    अम्बिका ने दीं चंद्राकार चिन्हों की ढाल
    और रूद्र दिये चंद्राकार तलवार

    काम करे सरपट का
    हूँ कवि मैं सरयू - तट का

    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(6)
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    पृथ्वी ने दी योगमयी पादुकायें
    आकाश नित्य पुष्पों - मालाएँ
    सातो समुद्र ने दिये शंख
    पर्वत–नदियों ने हटाईं पथ की बालायें
    बना दिया पृथु को जीवट का
    हूँ कवि मैं सरयू - तट का
    जल - फुहिया जिससे प्रतिपल झरती
    वरुण ने दिया छत्र ,श्वेत चंद्र- सम
    धर्म ने माला ,वायु ने दो चंवर दिये
    मनोहर मुकुट इन्द्र ने ब्रह्मा ने वेद- कवच का दम
    सम्पूर्ण सृष्टि का माथा चटका
    हूँ कवि मैं सरयू - तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(7)
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    सुन्दर वस्त्रों से हुए सुसज्जित
    और अलंकारों से पृथु राज
    स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान
    आभा अग्नि की, दिखे महाराज
    पहुंचे सभी न कोई अटका
    हूँ कवि मैं सरयू - तट का
    सूत - माधव वन्दीजन गाने लगे
    सिद्ध गन्धर्वादि नाचने - बजाने लगे
    पृथु को मिली अंतर्ध्यान - शक्ति
    महाराज पृथु को सभी बहलाने लगे

    दे - दे करके लटकी - लटका
    हूँ कवि मैं सरयू -तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(8)
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    गुणों और कर्मों का ,वंदीजन ने गुणगान किया
    पृथु महाराज ने सभी को,मुक्त भाव से दान दिया
    मंत्री,पुरोहित,पुरवासी,सेवक का भी मान किया
    चारो वर्णों का एकसाथ आज्ञानुर्वा - सम्मान किया
    गुंजाइस नहीं नहीं,किसी से खटपट का
    हूँ कवि मैं सरयू - तट का

    पृथु बोले ! सुन स्तुति गान
    जो कहता हूँ ,उसे लें मान
    मैं अभी श्रेष्ठ कर्म- समर्थ नहीं
    कि अभी सुनूं मैं कीर्तिगान

    कर्म -सुकर्म -भगत -जगत का
    कवि हूँ मैं सरयू -तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(9)
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    यह सुन सूत आदि सब गायक
    हर्षित हो ,मन ही मन नायक
    कहे,आप ही देवव्रत नारायण
    आप हैं गुणगान के लायक
    प्राकट्य कलावतार हरि - घट का
    कवि हूँ मैं सरयू - तट का

    धर्ममार्ग में नित चलकर
    निरपराधी को दंड न देंगे
    सूर्य किरणें जहां तक होंगी
    आपके यश - ध्वज फहरेंगे

    विन्दु न कोई छल - कपट का
    कवि हूँ मैं सरयू - तट का
    कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(10)
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