पत्रिका: युग वंशिका, अंक: जुलाई 2011, स्वरूप: वार्षिक, संपादक: नित्यानंद तुषार, पृष्ठ: 88, मूल्य: 30रू (वार्षिक: उपलब्ध नहीं), ई मेल: ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 0120.2742464, सम्पर्क: प्रारंभ प्रकाशन, आर 64, सेक्टर 12, प्रताप विहार, ग़ाजियाबाद उ.प्र.
समीक्षित अंक पत्रिका युग वंशिका का प्रवेशांक है। सामान्यतः किसी पत्रिका के प्रवेशांक में जो कमियां होती हैं प्रायः वही सब इसमें भी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पत्रिका साहित्यजगत के जानकारों के लिए अनुउपयोगी है। सरसरी तौर पर अंक देखकर यह कहा जा सकता है कि भविष्य में यह पत्रिका साहित्य जगत के शीर्ष पर अवश्य काबिज होगी। इस अंक में जीवन सरकार, रज्जन त्रिवेदी, विपिन बिहारी, सदानंद झा, जसवंत सिंह विरदी, रजनी गुप्त, कुंवर आमोद, दिवा भट्ट एवं किसलय पंचैली की कहानियों का प्रकाशन किया गया है। इनमें से कुछ कथाकार जाने पहचाने तथा शेष साहित्य जगत में लगभग नए हैं। लेकिन फिर भी बिपिन बिहारी, रजनी गुप्त एवं किसलय पंचोली की कहानियां सशक्त हैं। काजल पाण्डे का लघु उपन्यास ‘‘सच झूठ के बीच’’ एक वडी विषयवस्तु को प्रस्तुत करता है। प्रताप दीक्षित का व्यंग्य ख्यात व्यंग्यकार स्व. श्री रवीन्द्रनाथ त्यागी की सी भाषा के कारण प्रभावित करता है। नचिकेता, वीरेन्द्र आस्तिक, चन्द्रसेन विराट, यशोधर राठौर के गीतों में इस विधा के आधुनिक स्वरूप से दर्शन होते हैं। रंजना श्रीवास्तव तथा रश्मि रमानी की कविताएं समसामयिक हैं। निदा फाजली, नित्यानंद तुषार की ग़ज़लों को छोड़कर अन्य ग़ज़लें प्रभावित नहीं कर सकी हैं। पत्रिका का यह प्रवेशांक है इसमें साहित्य की अन्य विधा जैसे संस्मरण, रेखाचित्र, डायरी, रिपोतार्ज आदि विधाएं भी सम्मिलित की जाना चाहिए था। उम्मीद है साहित्य समाचार अगले अंक से अवश्य ही प्रकाशित किए जाएंगे?
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