पत्रिका: संस्कृति, अंक: 18 पूर्वाद्ध वर्ष 2010, स्वरूप: अर्द्धवार्षिक, संपादक: भारतेश कुमार मिश्र, पृष्ठ: 105, मूल्य: केवल नि शुल्क सीमित वितरण के लिए, ई मेल: editorsanskriti@gmail.com ,वेबसाईट: http://www.indiaculture.nic.in/ , फोन/मोबाईल: 011.23383032, सम्पर्क: केन्द्रीय सचिवालय, ग्रंथागार, द्वितीय तल, शास्त्री भवन, डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद मार्ग, नई दिल्ली 110001(भारत)
कला, साहित्य एवं सामाजिक संस्कारों की प्रमुख पत्रिका संस्कृति का प्रत्येक अंक सराहनीय होता है। समीक्षित अंक भी गंभीर, गहन विश्लेषण युक्त रचनाओं से युक्त है। अंक में ख्यात आलोचक समीक्षक रमेश कुंतल मेघ का आलेख सौन्दर्य बोध को नए सिरे से परिभाषित करता है। रामशरण युयुत्सू, अनिल कुमार तथा भालचंद्र जोशी के लेख क्षेत्रीय संस्कृति तथा सरोकारों की अच्छी प्रस्तुति कही जा सकती है। नरेश पुण्डरीक ने बुंदेलखण्ड तथा अश्विनी कुमार ने झारखण्ड को नए सिरे से सजाया सवांरा है। राजेन्द्र कुमार दीक्षित, परमानंद पांचाल, देवेन्द्र नाथ ओझा एवं लीला मिश्र ने हमारी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर को विश्लेषित कर उन्हें पाठकों की मुख्य पसंद बना दिया है। लोकेश चंद्र, मीना सिंह, कृपाशंकर सिंह तथा वीरेन्द्र सिंह यादव अपने अपने विषयों के साथ अच्छी तरह से न्याय कर सके हैं। वैदिक समाज और साहित्य में स्त्री की भूमिका(श्रुतिकांत पाण्डेय), भरमौर की जनजातिय संस्कृति(डाॅ. जगत सिंह), विवाह की विचित्र परंपराए(योगेश चंद्र शर्मा) एवं रवीन्द्र नाथ झा के आलेख पठनीय व संग्रह योग्य हैं। सुदर्शन वशिष्ठ, प्रदीप शर्मा तथा सुमित पी.बी. ने स्पष्ट व सारगर्भित विश्लेषण अपने अपने आलेखों में किया है। पत्रिका का कलेवर, साज सज्जा तथा प्रस्तुतिकरण प्रभावित करता है। इस अमूल्य पत्रिका को प्रत्येक पाठक पढ़कर सहेजना चाहेगा।
संस्कृति विषयक पत्रिकाओं में ऐसी संग्रहणीय पठनीय एवं शोधपूर्ण पत्रिका देश में शायद ही दूसरी हो| इसका प्रकाशन श्लाघनीय, समीचीन और जनोपयोगी है| इससे हर समाज का मार्ग प्रशस्त्र होता है| प्रो. रमेश कुंतल मेघ, डॉ, अनिल कुमार, अश्विनी कुमार पंकज और प्रदीप शर्मा खुसरो के आलेख लीक से हटकर लिखे गए और सारगर्भित हैं, जिन्हें पढ़कर सुहृदय पाठकों को भी परमसुख प्राप्त होगा| संस्कृति के सुसंपादन और शोधपरक प्रस्तुति के लिए बधार्इ स्वीकारें|
जवाब देंहटाएंडॉ. तारादत्त 'निर्विरोध', जयपुर, राजस्थान
ऐसी ज्ञानवर्धक पत्रिका की तथा संपादक की संपादन कला की भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ| पत्रिका के सभी लेख शोधपूर्ण मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी हैं| विद्वान लेखकों के प्रति साधुवाद| पत्रिका राष्ट्रहित में परम उपयोगी है| उत्तरोत्तर अभिवृदधि की कामना करता हूँ|
जवाब देंहटाएंडॉ. शारदा प्रसाद 'सुमन', कमला नगर, फिरोज़ाबाद
संस्कृति के अनुपम उपहार हेतु धन्यवाद| पत्रिाकाएं तो अनेक हैं, जिनमें साहित्य और संस्कृति की पंखुडि़यां भी दिखलार्इ देती हैं, किंतु संस्कृति का जो अद्वितीय पुष्प संस्कृति मंत्रालय के उपवन में मुकुलित हुआ है, उसके सौंदर्य एवं सुगंध से पाठकों का हृदय अभिभूत हो उठता है| संस्कृति परिवार को उत्कृष्ट प्रकाशन हेतु साधुवाद|
जवाब देंहटाएंडॉ. प्रभा पंत, एम.बी.राज.स्ना.महाविद्यालय, हल्द्वानी, नैनीताल
इस अंक में संस्कृति के विभिन्न आयामों को तथा भौगोलिक दृष्टि से विभिन्न अंचलों की परंपरा को सुंदर ढंग से सजाया गया है| 'विवाह की विचित्रा प्रथाएं', 'वेदों में पर्यावरण की अवधरणा' आदि आलेख पठनीय हैं| इस अनूठी और विशिष्ट ज्ञान से भरपूर पत्रिाका को पढ़ना और उसका आनंद उठाना अपने आप में एक विशिष्ट अनुभव है| पत्रिका के उज्जवल भविष्य के लिए मेरी अनेक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंमंजू सिंह, न्यू पनवेल, नवी मुंबर्इ
संस्कृति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह भारतीय संस्कृति के विविध् पक्षों को प्रस्तुत करने वाली बेजोड़ पत्रिाका है| इसे पढ़कर मैं अभिभूत हूँ| पत्रिाका में निरंतर निखार आता रहे, यही कामना है|
जवाब देंहटाएंविष्णु वर्मा, ककोली, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश
संस्कृति के अनदेखे पक्षों एवं आयामों को उद्घाटित करना अपने में स्तुत्य कार्य है| हमारे देश में इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति एवं परंपरा, कला एवं साहित्य की नर्इ-से-नर्इ जानकारी प्रस्तुत करने वाली एकमात्र पत्रिका यही है| ऐसे अंकों को नियमित निकालना एवं पाठकों को संस्कृति के अर्थ और महत्व को विस्तार से समझाना स्तुत्य कार्य है| संपादक मंडल को हार्दिक बधार्इ देना हम अपना कर्म समझते हैं|
जवाब देंहटाएंप्रो.डॉ. वी. डी. कृष्णन नंपियार, तिरूवल्ला, केरल
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