पत्रिका: संबोधन, अंक: अप्रैल-जून 2011, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: क़मर मेवाड़ी, , पृष्ठ: 64, मूल्य: 20रू (वार्षिक: 80 रू.), ई मेल: उपलब्ध नहीं, ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 02952223221, सम्पर्क: पो. कांकरोली, जिला राजसमंद, राजस्थान
पत्रिका के इस अंक में ख्यात कवि विद्यासागर नौटियाल से महावीर रवाल्टा की बातचीत प्रभावित करती है। विष्णु चंद शर्मा का लेख आप जो कहिए जा वह बाजार से ला देता हूं मैं रचना अपने आप में अनूठी है। सुशांत सुप्रिय, विनीता जोशी, मीरा पुरवार, नीना जैन की कविताएं आज के सामाजिक संदर्भो पर एक नजरिया है। ग़ज़लों में रामकुमार सिंह व सुरेश उजाला ने नए अंदाज में अपनी बात कहने का प्रयास किया है। हबीब कैफी की कहानी ‘वाणी में प्रकाश’ आज कल की नई कहानियों से अलग हटकर सामाजिक संबंधों की पुर्नव्याख्या है। वेद व्यास का आलेख ‘राजस्थान में 2010 का साहित्य’ में वहां के साहित्य की संक्षिप्त किन्तु अच्छी विवेचना की गई है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं भी प्रभावित करती है। समीक्षा जनसंदेष टाइम्स में दिनांक 19.06.2011 को प्रकाषित हो चुकी है।
ाच्छी जानकारी। धन्यवाद।
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