पत्रिका: पाखी, अंक: अपै्रल 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: प्रेम भारद्वाज, पृष्ठ: 96, मूल्य: 20रू(वार्षिक 240रू.), ई मेल: pakhi@pakhi.in ,वेबसाईट: http://www.pakhi.in/ , फोन/मोबाईल: 0120.4070100, सम्पर्क: इंडिपेडेंट मीडिया इनिशियेटिव सोसायटी, बी 107, सेक्टर 63, नोएड़ा 201303 उ.प्र.
पत्रिका का यह अंक जन्मशती अंक के रूप में प्रकाशित किया गया है। अंक में अज्ञेय, नागार्जुन, शमशेर बहादुर, फै़ज, उपेन्द्र नाथ अश्क, भगवत शरण उपाध्याय, भुवनेश्वर, गोपाल सिंह नेपाली, राधाकृष्ण तथा आरसी प्रसाद सिंह पर सामग्री का प्रकाशन किया गया है। यद्यपि यह प्रकाशित सामग्री इन साहित्यकारांे, कवियों, लेखकों के समग्र व्यक्तित्व-कृतित्व पर न होकर एक संस्मरण के रूप में है। लेकिन फिर भी प्रकाशित लेखों से उनके संबंध मंे पाठकों की जिज्ञासाएं शांत अवश्य होती है। रमेश चंद शाह, उद्भ्रांत, विजय बहादुर सिंह, सुरेन्द्र स्निग्ध, मदन कश्यप, अब्दुल बिस्मिल्लाह, अली अहमद फातमी, बलराम, नीलाभ, खगेन्द्र ठाकुर, संजीव, नरेन्द्र पुण्डरीक, नंदकिशोर नंदन तथा रश्मि रेखा ने अपने अपने आलेखों में नए संदर्भ के साथ रचनाकारों पर विचार व्यक्त किए हैं। अज्ञेय के मर्मज्ञ कृष्णदत्त पालीवाल से पंकज शर्मा की बातचीत जन्मशती मनाने की साथ्र्कता पर बहुत अधिक एकाग्र होे गई है। जसपाल सिंह, विमल कुमार, विनोद अनुपम तथा राजीव रंजन गिरि के स्तंभों की सामग्री भी नवीनता लिए हुए है। इतने अधिक रचनाकारों पर कम से कम चार अंक प्रकाशित किए जाते तो भी कम था। इसलिए संक्षेप में जन्मशती मनाने का पाखी का यह प्रयास गले नहीं उतरता है। (समीक्षा जनसंदेष टाइम्स में पूर्व में प्रकाषित हो चुकी है।)
badhiya jankari
ردحذفहिन्दी साहित्य के प्रकाशन जगत में क्या हो रहा है, इसकी पूरी जानकारी आपके ब्लॉग पर उपलबध है। मेरे एक मित्र ने हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं की जानकारी मुझसे मांगी तो मैनें केवल उसे आपके ब्लॉग का पता बता दिया। आपका ब्लॉग देखकर वह भी तारीफ किये बिना नहीं रह सका और अब वह शीघ्र ही अपना ब्लॉग भी बनाने वाला है ताकि आपके ब्लॉग के सम्पर्क में बना रहे।
ردحذفआज की पत्रकारिता को तो सांप सूंघ गया है. कहाँ एक विद्वान को याद करने का समय किसी के पास नहीं है. अगर किसी ने एक साथ कई के जन्म शती के बारे में सोचा तो इसमें तो उसकी महानता का बोध होता है. इसमें गले उतरने की क्या बाद है.
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