
इस प्रतिष्ठित पत्रिका के प्रत्येक अंक में प्रकाशित रचनाओं में कुछ न कुछ अलग हटकर होता है। इस अंक में गुलजार, भारत भारद्वाज एवं कृष्ण कुमार जैसे ख्यात लेखकों-साहित्यकारों के आलेख प्रकाशित किए गए हैं। प्रकाशित कहानियों में रैम्बल(प्रदीप पंत) तथा सन्नाटा(जयशंकर) विशिष्ठ कहानियां हैं। अंशु त्रिपाठी, प्रतापराव कदम तथा शुभमश्री की कविताएं काव्य के निश्चित प्रतिमानों से अलग समाज के लिए सोचती हैं। देशकाल के अंतर्गत विश्वास पाटिल, शशांक दुबे, प्रांजल धर तथा श्रीगोपाल काबरा ने साहित्येत्तर विषयों का अच्छा विश्लेषण किया है। द्रोणवीर कोहली का उपन्यास ‘खाड़ी में खुलती खिड़की’ पढ़कर यह समझना कठिन हो जाता है कि आखिर क्यों संपादक ने इसे इतनी अधिक तवज्जो दी है। भगवान सिंह, अजय तिवारी तथा विजय मोहन सिंह के साहित्यालेख प्रभावित करते हैं।
aapki sameeksha apane ,men poorn hoti hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंupanyas padhkar sachmuch aisa hee laga..bawzud iske naya gyanoday ki samagree pathneey stareey aur rochak rahtee hai
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